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१०० चतुर्थ दादागुरु देव पूजा
(तर्ज-महावीर तुम्हारी मोहन मूरति देखी मन ललचाय) जिनचंद गुरु जयकारी पूजो युगपरधान महान ।। टेर ।
गुरु योग-तपो बल धारी, बकरी संख्या त्रिविस्तारी। अकबर आश्चर्य अपारी-पाया,धन गुरुवर विज्ञान जि०॥१॥
काजी निजटोपी उडाई, गुरु रजोहरण से लाई। अद्भुत महिमा दिखलाई,धन धनसद्गुरु महिमावानजि०२
शासन रक्षक गुरु राया, अमावस पूनम गाया । पूरण वर चाँद दिखाया, थे गुरु पूरे पहुँचवान जि० ॥३॥
चोरों ने ग्रन्थ चुराये, गुरु महिमा अंध बनाये । सब चोर लगे गुरु पाये, त्यागी चोरी पाप प्रधान जि०||४||
तप संयम गुण तदवीरा, गुरु पंच नदी के पीरा । थे सधे असुर-सुर-वीरा, गुरु के सेवक भझिमान जि० ॥५॥
अकबर सम्राट सनरा. जोधाणपति सिंह' मूरा । बीकाणपतिराय पूरा,सद्गुरु परम भक्त गुणवान् जि०॥६॥
श्री जहांगीर फरमाना, साधु-विहार अटकाना । देबोध सुमुक्त कराना,गुरुकी शासन सेव महान् जि० ॥७॥
साह शिवा-सोम दो भाई, निर्धनता दूर भगाई। गुरु सेवा मेवा पाई, सेवो सद्गुरु सदा सुजान जि० ॥८॥
गुरु सुखसागर भगवाना, गुरु अशरण शरण प्रधाना। हरिगुरुपूजोसुविधिविधाना,पावोगुरु-पदगुरु गुणज्ञानजि०६
१-जोधपुर के महाराजा श्रीसूरसिंहजी २-बीकानेर के महाराजा श्रीरायसिंहजी गुरु महाराज के भक्त थे।
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