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________________ ११८] तत्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय : त्रिंशत्तु सागरोपमाणि, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् । अष्टमे जघन्येन, सागरोपमाणामेकोनत्रिंशत् ।। २३९ ।। सागरोपमाणामेकत्रिंशत्तु उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् । नवमे जघन्येन, त्रिंशत्सागरोपमाणि ॥ २४० ॥ त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमाणि, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् । चतुर्ष्वपि विजयादिषु, जघन्येनैकत्रिंशत् ॥ २४९ ॥ अजघन्यानुत्कृष्टा, त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि । महाविमाने सर्वार्थे, स्थितिरेषा व्याख्याता ।। २४२ ।। भाषा टीका - सौधर्म स्वर्ग की जघन्य आयु एक पल्य तथा उत्कृष्ट आयु दो सागर की है | २०० || ईशान स्वर्ग की जघन्य आयु एक पल्य से कुछ अधिक तथा उत्कृष्ट दो सागर से कुछ अधिक है ॥ २२९ ॥ सानत्कुमार स्वर्ग की जघन्य आयु दो सागर तथा उत्कृष्ट आयु सात सागर है || २२२ ॥ माहेन्द्र स्वर्ग की जघन्य आयु दो सागर से कुछ अधिक तथा उत्कृष्ट आयु सात सागर से कुछ अधिक होती है ॥ २२३ ॥ ब्रह्मलोक की जघन्थ आयु सात सागर तथा उत्कृष्ट आयु दश सागर होती है || २२४ ॥ लान्तक में जघन्य आयु दस सागर तथा उत्कृष्ट आयु चौदह सागर होती है || २२५ ॥ महाशुक्र की जघन्य आयु चौदह सागर और उत्कृष्ट आयु सतरह सागर होती है ॥ २२६ ॥ सहस्रार की जघन्य आयु सतरह सागर तथा उत्कृष्ट आयु अठारह सागर होती है || २२७ ॥ आनत स्वर्ग को जघन्य आयु अठारह सागर होती है तथा उत्कृष्ट आयु उन्नीस सागर होती है ।। २२८ ॥ प्राणत स्वर्ग को जघन्य आयु उन्नीस सागर तथा उत्कृष्ट आयु बीस सागर होती है || २२६ || आरण स्वर्ग की जघन्य श्रयु बोस सागर और उत्कृष्ट आयु इक्कीस सागर होती है || २३० ॥ अच्युत स्वर्ग की जघन्य चायु इक्कीस सागर तथा उत्कृष्ट आयु बाईस सागर होती है | २३१ ॥ प्रथम प्रवेयक की जघन्य आयु बाईस सागर की तथा उत्कृष्ट आयु तेईस सागर है || २३२ || दूसरे ग्रैवेयक की जघन्य आयु तेईस सागर तथा उत्कृष्ट आयु चौबीस सागर होती है ॥ २३३ ॥ तीसरे प्रवेयक की जघन्य आयु चौबीस सागर तथा उत्कृष्ट आयु पच्चीस सागर होती है ॥२३४॥ चतुर्थ वैक की जघन्य आयु पच्चीस सागर तथा उत्कृष्ट आयु छब्बीस सागर होती है
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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