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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ निरजर द्विज अरु सतपुरुष, खुशी होत सतभाव ॥
अपर खान अरु पान से, पण्डित वाक्य प्रभाव ॥ १२७ ॥ देवता, ब्राह्मण और सत्पुरुष, ये तो भावभक्ति से प्रसन्न होते हैं, दूसरे मनुष्य खान पान से प्रसन्न होते हैं और पण्डित पुरुष वाणी के प्रभाव से प्रसन्न होते हैं ।। १२७ ॥
अग्नि तृप्ति नहिँ काष्ठ से, उदधि नदी के वारि ॥
काल तृप्ति नहिँ जीव से, नर से वृति न नारि ॥ १२८ ।। अमि काष्ठ से तृप्त नहीं होती, नदियों के जल से समुद्र तृप्त नहीं होता, काल जीवों के खाने से तृप्त नहीं होता, इसी प्रकार से स्त्रियां पुरुषों से तृप्त नहीं होती हैं ॥ १२८ ॥
गज को टूट्यो युद्ध में, शोभ लहत जिमि दन्त ॥
पण्डित दारिद दूर करि, त्यो सजन धनवन्त ॥ १२९ ॥ . जैसे बड़े युद्ध में टूटा हुआ हाथियों का दांत अच्छा लगता है-उसी प्रकार यदि कोई सत्पुरुष किसी पण्डित (विद्वान् पुरुष) की दरिद्रता खोने में अपना धन खर्च करे तो संसार में उस की शोमा होती है ।। १२९ ॥
सुत विन घर सूनो कह्यो, विना बन्धुजन देश ।
मूरख को हिरदो समझ, निरधन जगत अशेष ॥ १३०॥ लड़के के विना घर सूना है, बन्धु जनों के विना देश सूना है, मूर्ख का हृदय सूना है और दरिद्र (निर्धन ) पुरुष के लिये सब जगत् ही सूना है ॥ १३० ।।
नारिकेल आकार नर, दीसै विरले मोय ॥ वरीफल आकार बहु, ऊपर मीठे होय ॥ १३१ ॥ नारियल के समान आकार वाले सत्पुरुप संसार में थोड़े ही दीखते हैं परन्तु वेरै के समान आकार वाले बहुत से पुरुष देखे जाते हैं जो केवल ऊपर ही मीठे होते है॥ १३१॥
जिन के सुत पण्डित नहीं, नहीं भक्त निकलङ्क ॥
अन्धकार कुल जानिये, जिमि निशि विना मयङ्क ।। १३२ ।। जिस का पुत्र न तो पण्डित है, न भक्ति करने वाला है और न निष्कलंक (कलंक
१-केवल वे स्त्रियां समझनी चाहिये जो कि चित्त को स्थिर न रखकर कुमार्ग में प्रवृत्त हो गई हैं क्योंकि इसी आर्यदेश में अनेक वीरांगना परम सती, साध्वी तथा पतिप्राणा हो चुकी हैं।
२-नारियल के समान आकार वाले अर्थात् ऊपर से तो रूक्ष परन्तु भीतर से उपकारक, जैसे कि नारियल ऊपर से खराब होता है परन्तु अन्दर से उत्तम गिरी देता है ।
ई-वेर के समान आकार वाले अर्थात् ऊपर से लिप (चिकने चुपडे) परन्तु भीतर से कुछ नहीं, जैसे कि वेर ऊपर से चिकना होता है परन्तु अन्दर केवल नीरस गुठली निकलती है ॥