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तृतीय अध्याय ॥
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१४ - चरणरक्षा - ( पैरों की हिफाज़त ) पैर ही तमाम शरीर की जड़ हैं इसलिये उन की रक्षा करना अति आवश्यक है, अतः ऐसा प्रबंध करते रहना चाहिये कि जिस से बालक के पैर गर्म रहें, जब पैर ठंढे पड़ जावें तो उन को गर्म पानी में रख के गर्म कर देना चाहिये तथा पैरों में मोज़े पहना देना चाहिये, सोते समय भी पैर गर्म ही रहें ऐसा उपाय करना चाहिये क्योंकि पैर ढंढे रहने से सर्दी लगकर व्याधि होने का सम्भव है, शीत ऋतु में पैरों में मोने तथा मुलायम देशी जूते पहनाना चाहिये क्योंकि पैरों में जूते पहनाये रखने से ठंढ गर्मी और कांटों से पैरों की रक्षा होती है। परन्तु सँकड़े (कठिन) जूते नहीं पहनाना चाहिये क्योंकि सँकड़े जूते पहनाने से बालक के पैर का तलवा बढ़ता नहीं है, अंगुलियां सँकुच जाती है तथा पैर में छाले आदि पड़ जाते हैं, बालक को चलाने और खड़ा करने के लिये माता को त्वरा (शीघ्रता) नहीं करनी चाहिये किन्तु जब बालक अपने आप ही चलने और खड़ा होने की इच्छा और चेष्टा करे तब उस को सहारा देकर चलाना और खड़ा करना चाहिये क्योंकि बलात्कार चलाने और खड़ा करने से उस के कोमल पैरों में शक्ति न होने से वे (पैर) शरीर का बोझ नहीं उठा सकते है, इस से चालक गिर जाता है तथा गिर जाने से उस के पैर टेढ़े और मुड़े हुए हो जाते हैं, घुटने एक दूसरे से भिड़ जाते हैं और तलवे चपटे हो जाते हैं इत्यादि अनेक दूषण पैरों में हो जाते हैं, बारीक को घर में खुले (नंगे पैर चलने फिरने देना चाहिये क्योंकि नंगे पैर चलने फिरने देने से उस के पैरों के तलवे मज़बूत और सख्त हो जाते है तथा पैरों के पते भी चौड़े हो जाते हैं ॥
१५ - मस्तक — बालक का मस्तक सदा ठंढा रखना चाहिये, यदि मस्तक गर्म होजावे तो ठंढा करने के लिये उस पर शीतल पानी की धारा डालनी चाहिये, पीछे उसे पोछ कर और साफ कर किसी वासित तेल का उस पर मर्दन करना चाहिये, क्योकि मस्तक को धोने के पीछे यदि उस पर किसी वासित तेल का मर्दन न किया जावे तो मस्तक में पीड़ा होने लगती है, बालक के मस्तक से बाल नहीं उतारना चाहिये और न बड़ी शिखा तथा चोटला रखना चाहिये किन्तु केवल बाल कटाते जाना चाहिये, हां बालिकाओं का तो जब वे चार पांच वर्ष की हो जावें तब चोटला रखना चाहिये, बालक को खान कराते समय प्रथम मस्तक भिगोना चाहिये पीछे सब शरीर पर पानी डाल कर स्नान कराना चाहिये, मस्तक पर ठंडे पानी की धारा डालने से
१-न केवल बालकका ही मस्तक उठा रखना चाहिये किन्तु सब लोगो को अपना मस्तक सदा ठंदा रखना चाहिये क्योंकि मस्तक वा मगज़ को तरावटकी आवश्यकता रहती है ॥