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जैनसम्प्रदायशिक्षा ||
हुए हों तो कुछ वस्त्रों को जोड़ कर ही तथा धोकर और स्वच्छ करके पहनाने चाहियें परन्तु मलीन वस्त्र कमी नहीं पहनाने चाहियें क्योंकि बालक के शरीर तथा उस के कपड़े की खच्छताद्वारा प्रत्येक पुरुष अनुमान कर सकेगा कि इस ( वालक) की माता चतुर और सुघड़ है - किन्तु इस से विपरीत होने से तो सब ही यह अनुमान करेंगे कि - बालककी माता फूहड़ होगी, अन्य देशोंकी स्त्रियों की अपेक्षा दक्षिण की स्त्रियां सुघड़ और चतुर होती हैं और यह बात उन के बालकोंकी स्वच्छता के द्वारा ही जानी तथा देखी जा सकती है।
चालक को प्रायः बाहर हवा में भी घुमाने के लिये ले जाना चाहिये परन्तु उस समय फलालेन आदि के गर्म कपड़े पहनाये रखने चाहियें क्योंकि फलालेन आदि का वस्त्र पहनाये रखने से बाहर की ठंढी हवा लगने से सर्दी नहीं व्यापती है तथा उस समय में उक्त वस्त्र पहनाये रखने से मीतरी गर्मी बाहर नहीं निकलने पाती है और न बाहर की सर्दी भीतर जा सकती है, वालक को सर्दी के दिनों में कानटोपी और पैरों में मोजे पहनाये रखने चाहियें, यदि मोज़े न हों तो पैरों पर कपड़ा ही लपेट देना चाहिये, कानटोपी भी यदि ऊनकी हो तो बहुत ही लाभदायक होती है, मल मूत्र और लार से भीगे हुए कपड़े को शीघ्रही बदल कर दूसरा स्वच्छ वस्त्र पहना देना चाहिये क्योंकि ऐसा न करने से सर्दी होकर कफ होजाता है, शीत तथा वर्षा ऋतु में हवा में बाहर घुमाने के लिये ले जावे तो आंख और मुंहके सिवाय सव शरीर को शाल या किसी गर्म कपड़े से ढक कर
जाना चाहिये, लार गिरती हो तो उस जगह पर रूमाल वा कोई कपड़ा रखना चाहिये, बालक के पैर; सीना (छाती) और पेट को सदा गर्म रखना चाहिये किन्तु इन अंगोंको ठंढे नहीं होने देना चाहिये, बस ऊपर लिखी रीति के अनुसार बालक को खूब हिफाजत के साथ कपड़े पहनाने चाहियें क्योंकि ऐसा न करने से बहुत हानि होती है, बालक को इतने अधिक वस्त्र भी नहीं पहनाने चाहियें कि जिन से वह पसीना युक्त होकर घबडा जावे, इसी प्रकार गर्मी में भी बहुत कपड़े नही पहनाने चाहियें कि जिस से वारंवार पसीना निकलता रहे क्योंकि बहुत पसीना निकलने से शरीर वलहीन हो जाता है, इस लिये गर्मी में बारीक वस्त्र पहनाने चाहिये, बालक की त्वचा बहुत ही नाजुक और मुलायम होती है इस लिये उस को कपड़ेभी बहुत मुलायम और ढीले पहनाने चाहियें, हरे रंग में सोमल का विष होता है इस लिये हरे वस्त्र नही पहनाने चाहियें क्योंकि वालक उस को मुंह में डाल ले तो हानि हो जाती है, इसी प्रकार वह रंग त्वचासे लगने से भी हानि पहुँचती है, यथाशक्य (जहां तक हो सके ) भमका और टाप टीप पर मोहित न हो कर बालक को सुखकारी कपड़े पहनाने चाहियें, बालकों को शीत ऋतु में खुला ( उघाड़ा ) नहीं रखना चाहिये और न बारीक वस्त्र पहना कर अथवा आघे खुले शरीर से खुले