Book Title: Jain Sampradaya Shiksha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 280
________________ संख्या । १ २ तरफ | सम्मुख होने पर सङ्क्रान्ति । धन तथा मीन की । करता है । दाहिनी तरफ हो सुख तथा सम्पत्ति ने पर । करता है । के निवास के जानने का कोठे ॥ वृष तथा कुम्भ की। मेष तथा कर्क की । पञ्चम अध्याय || चन्द्रमा का फल | फल | संख्या । । अर्थ का लाभ ३ कन्या तथा मिथुन की । वृश्चिक तथा सिंह की । मकर तथा तुल की। तिथि । द्वितीया । चतुर्थी । षष्ठी । अष्टमी । दशमी । द्वादशी । कालराहु नाम वार | दिशा में । नाम बार। दिशा में । नाम वार | दिशा में | नाम वार | दिशा में । शनिवार। पूर्व दिशा में। गुरुवार। दक्षिण दिशा में। मंगलवार । पश्चिम दिशा में। रविवार । उत्तर शुक्रवार | अग्निकोण में। बुधवार । नैर्ऋत्य कोण में । सोमबार । वायव्य कोण में। दिशा में । अर्कदग्धा तथा चन्द्रदग्धा तिथियों का वर्णने ॥ अर्कदग्धा तिथियाँ | चन्द्रदग्धा तिथियाँ || तरफ 1 पीठ की तरफ होने पर । वाह तरफ होने पर ४ M ७१५ फल | प्राणों का नाश करता है। । धन का क्षय करता है । चन्द्रराशि | वृष और कर्क राशि के चन्द्र में । घन और कुम्भ राशि के चन्द्र में । वृश्चिक और कन्या राशि के चन्द्र में । । मीन और मकर राशि के चन्द्र में तुल और सिंह राशि के चन्द्र में । मेष और मिथुन राशि के चन्द्र में 1 । तिथि । दशमी । द्वितीया । द्वादशी । अष्टमी । षष्ठी । चतुर्थी । इष्ट काल साधन | पहिले कह चुके है कि- जन्मकुंडली वा जन्मपत्री के बनाने के लिये इष्टकाल का साधन करना अत्यावश्यक होता है, क्योंकि इस ( इष्टकाल ) के शुद्ध किये विना जन्म १- परदेशादि में गमन करने के समय उक्त सब बातो ( दिशाशूल आदि ) का देखना आवश्यक होता है, इन बातों के ज्ञानार्थं इस दोहे को कण्ठ रखना चाहिये कि - "दिशाशूल ले जावे वार्ये, राहु योगिनी पूठ ॥ सम्मुख लेवे चन्द्रमा, लावै लक्ष्मी लूट" ॥ १ ॥ इम के सिवाय जन्म के चन्द्रमा में परदेशगमन, तीर्थयात्रा, युद्ध, विवाह, धौरकर्म अर्थात् मुण्डन तथा नये घर मे निवास, ये पाँच कार्य नहीं करने चाहियें ॥ २- अर्कदग्धा तथा चन्द्रदग्धा तिथियों में शुभ तथा माङ्गलिक कार्य का करना अत्यन्त निषिद्ध है |

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