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जैनसम्प्रदायशिक्षा ||
हिफ़ाज़त करनी चाहिये, इस के पीछे बालक के शरीरपर यदि श्वेत चरवी के समान चिकना पदार्थ लगा हुआ होवे अथवा अन्य कुछ लगा हुआ होवे तो उस को साफ करने के लिये प्रथम बालक के शरीरपर तेल मसलना चाहिये तत्पश्चात् साबुन लगाकर गुनगुने (कुछ गर्म ) पानी से मुलायम हाथ से बालक को स्नान कराके साफ करना चाहिये, परन्तु स्नान कराते समय इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिये कि उस की आंख में तेल साबुन वा पानी न चला जावे, प्रसूर्ति के समय में पास रहने वाली कोई चतुर स्त्री बालक को स्नान करावे और इस के पीछे प्रतिदिन बालक की माता उस को ज्ञान करावे |
स्नान कराने के लिये प्रातः कालका समय उत्तम है- इस लिये यथाशक्य प्रातः काल में ही स्नान करना चाहिये, स्नान कराने से पहिले बालक के थोड़ासा तेल लगाना चाहिये, पीछे मस्तकपर थोड़ासा पानी डाल कर मस्तक को भिगोकर उस को धोना चाहिये तत्पश्चात् शरीरपर साबुन लगा कर कमरतक पानी में उस को खड़ा करना वा विठलाना चाहिये अथवा लोटे से पानी डालकर मुलायम हाथ से उस के तमाम शरीर को धीरे २ मसलकर धोना चाहिये, स्नान के लिये पानी उतना ही गर्म लेना चाहिये कि जितनी बालक के शरीर में गर्मी हो ताकि वह उस का सहन कर सके, स्नान के लिये पानी को अधिक गर्म नही करना चाहिये और न अधिक गर्म कर के उस में ठंढा पानी मिलाना चाहिये किन्तु जितने गर्म पानी की आवश्यकता हो उतना ही गर्म कर के पहिले से ही रख लेना चाहिये और इसी प्रकार से स्नान कराने के लिये सदा करना चाहिये, स्वान कराने में इन बातों का भी ख्याल रहना चाहिये कि - शरीर की सन्धिओं आदि में कहीं भी मैल न रहने पावे ।
माथे पर पानी की धारा डालने से मस्तक ठंढा रहता है तथा बुद्धि की वृद्धि होकर प्रकृति अच्छी रहती है, प्रायः मस्तक पर गर्म पानी नहीं डालना चाहिये क्योंकि मस्तक पर गर्म पानी डालने से नेत्रों को हानि पहुँचती है, इस लिये मस्तक पर तो ठंढा पानी ही डालना उत्तम है, हां यदि ठंढा पानी न सुहावे तो थोड़ा गर्म पानी डालना चाहिये, छोटे बालक को स्नान कराने में पांच मिनट का और बड़े बालक को स्नान कराने में दश {मिनट का समय लगाना चाहिये, स्नान कराने के पीछे बालक का शरीर बहुत समय तक गा हुआ नहीं रखना चाहिये किन्तु स्नान कराने के बाद शीघ्र ही मुलायम हाथ से इझी स्वच्छ वस्त्र से शरीर को शुष्क ( सूखा ) कर देना चाहिये, शुष्क करते समय से ३ की त्वचा. ( चमड़ी ) न घिस (रगड ) जावे इस का ख्याल रखना चाहिये, शुष्क
फिर पीछे भी शरीर को खुला ( उघाड़ा) नहीं रखना चाहिये किन्तु शीघ्र ही बालक
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