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चतुर्थ अध्याय ॥
२९९ मञ्जन नहीं लगाते है उन के दाँतों में नाना प्रकार के रोग हो जाते है अर्थात् कभी २ वादी के कारण मसूडे फूल जाते हैं, कभी २ रुधिर निकलने लगता है और कभी २ दाँतों में दर्द भी होता है, दाँतों के मलीन होने से मुख की छवि बिगड़ जाती है तथा मुख में दुर्गन्ध आने से सभ्य मण्डली में (बैठने से ) निन्दा होती है, इस लिये दाँतोन तथा मञ्जन का सर्वदा सेवन करना चाहिये, तत्पश्चात् खच्छ जल से मुख को अच्छे प्रकार से साफ करना चाहिये परन्तु नेत्रों को गर्म जल से कभी नहीं धोना चाहिये क्योंकि गर्म जल नेत्रों को हानि पहुँचाता है ॥
दाँतोन करने का निषेध-अजीर्ण, वमन, दमा, ज्वर, लकवा, अधिक प्यास, मुखपाक, हृदयरोग, शीर्ष रोग, कर्णरोग, कंठरोग, ओष्ठरोग, जिह्वारोग, हिचकी और खांसी की वीमारीवाले को तथा नशे में दाँतोन नहीं करना चाहिये ।।
दाँतों के लिये हानिकारक कार्य-गर्म पानी से कुल्ले करना, अधिक गर्म रोटी को खाना, अधिक बर्फ का खाना या जल के साथ पीना और गर्म- चीज़ खाकर शीघ्र ही ठंढी चीज़ का खाना या पीना, ये सब कार्य दांतों को शीघ्र ही विगाड़ देते है तथा कमजोर कर देते है इस लिये इन से बचना चाहिये ।।
__ व्यायाम अर्थात् कसरत ॥ व्यायाम भी आरोग्यता के रखने में एक आवश्यक कार्य है, परन्तु शोक वा पश्चात्ताप का विषय है कि भारत से इस की प्रथा बहुत कुछ तो उठ गई तथा उठती चली जाती है, उस में भी हमारे मारवाड़ देश में अर्थात् मारवाड़ के निवासी जनसमूह में तो इस की प्रथा विलकुल ही जाती रही।
आजकल देखा जाता है कि भद्र पुरुष तो इस का नामतक नहीं लेते है किन्तु वे ऐसे ( व्यायाम करनेवाले ) जनों को असभ्य (नाशाइस्तह) बतलाते और उन्हें तुच्छ दृष्टि से देखते हैं, केवल यही कारण है कि जिस से प्रतिदिन इस का प्रचार कम ही होता चला जाता है, देखो ! एक समय इस आर्यावर्त देश में ऐसा था कि जिस में महावीर के पिता सिद्धार्थ राजा जैसे पुरुष भी इस अमृतरूप व्यायाम का सेवन करते थे अर्थात् उस समय में यह आरोग्यता के सर्व उपायों में प्रधान और शिरोमणि उपाय गिना जाता था और उस समय के लोग “एक तन दुरुस्ती हजार नियामत" इस वाक्य के तत्त्व को अच्छे प्रकार से समझते थे।
विचार कर देखो तो मालूम होगा कि मनुष्य के शरीर की बनावट घड़ी अथवा दूसरे यन्त्रों के समान है, यदि घड़ी को असावधानी से पड़ी रहने दें, कभी न झाड़ें फूकें और
१-इस विषय का पूरा वर्णन कल्पसूत्र की लक्ष्मीवल्लभी टीका में किया गया है, वहा देख लेना चाहिये।