Book Title: Jain Sampradaya Shiksha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 268
________________ पञ्चम अध्याय ६८५ ६८५ पाँचवाँ प्रकरण-बारह न्यात वर्णन ॥ बारह न्यातों का वर्ताव ॥ वारह न्यातों में जो परस्पर में वर्ताव है वह पाठकों को इन नीचे लिखे हुए दो दोहों से अच्छे प्रकार विदित हो सकता है:दोहा-खण्ड खंडेला में मिली, सब ही बारह न्यात ॥ खण्ड प्रस्थ नृप के समय, जीम्या दालरु भात ॥१॥ बेटी अपनी जाति में, रोटी शामिल होय ॥ काची पाकी दूध की, भिन्न भाव नहिं कोय ॥२॥ सम्पूर्ण बारह न्यातों का स्थानसहित विवरण ॥ संख्या नाम न्यात स्थान से संख्या नाम न्यात स्थान से १ श्रीमाल भीनमाल से ७ खंडेलवाल खंडेला से २ ओसवाल ओसियाँ से ८ महेश्वरी डीडू डीडवाणा से ३ मेड़तवाल मेड़ता से ९ पौकरा पौकर जी से जायलवाल जायल से १० टीटोड़ा टीटोड़गढ़ से ५ वषेरवाल वषेरा से ११ कठाड़ा खाटू गढ़ से ६ पल्लीवाल पाली से १२ राजपुरा राजपुर से मध्यप्रदेश (मालवा) की समस्त बारह न्यातें॥ संख्या नाम न्यात संख्या नाम न्यात संख्या नाम न्यात संख्या नाम न्यात १ श्री श्रीमाल ४ ओसवाल ७ पल्लीवाल १० महेश्वरी डीडू २ श्रीमाल ५ खंडेलवाल ८ पोरवाल ११ हूमड़ ३ अग्रवाल ६ वघेरवाल ९ जेसवाल १२ चौरंडियों १-इन दोहो का अर्थ सुगम ही है, इस लिये नहीं लिखा है। २-सब से प्रथम समस्त वारह न्याने बँडेला नगर में एकत्रित हुई थी, उस समय निन २ नगरी से जोर वैश्य आये थे वह सब विषय कोष्ठ मे लिख दिया गया है, इस कोष्ठ के भागे के दो कोठा में देशप्रथा के अनुसार बारह न्यातों का निदर्शन किया गया है अर्थात् जहाँ अग्रवाल नहीं आये वहाँ चित्रवाल शामिल गिने गये, इस प्रकार पीछे से जैसा २ मौका जिस २ देशवालों ने देखा वैसा ही वे करते गये, इस में असली तात्पर्य उन का यही था कि-सव वैश्यों में एकता रहे और उन्नति होती रहे किन्तु केवल पेट को भर २ कर चले जाने का उन का तात्पर्य नहीं था ॥ . ३-'स्थान सहित, अर्थात् जिन स्थानो से आरकर वे सब एकत्रित हुए थे दिखो संख्या २ का नोट)। ४-इन मे श्री श्रीमाल हस्तिनापुर से, अप्रवाल अगरोहा से, पोरवाल पारेवा से, जैसवाल जसलगढ से, हमड सादवाडा से तथा चौरडिया चावडिया से आये थे, शेष का स्थान प्रथम लिख ही चुके है ।। 03 or

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