Book Title: Jain Sampradaya Shiksha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 275
________________ ७१० रवि उद्वेग चल लाभ अमृत काल शुभ रोग उद्वेग रवि शुभ अमृत चल रोग काल सोम अमृत काल लाभ उद्वेग शुभ शुभ रोग उद्वेग चल अमृत काल लाभ शुभ रोग सोम चल रोग काल लाभ उद्वेग मङ्गल रोग उद्वेग चल लाभ लाभ अमृत अमृत लाभ शुभ चल काल विज्ञान - ऊपर के कोष्ठ से यह समझना चाहिये कि जिस दिन जो वार हो उस दिन उसी बार के नीचे लिखा हुआ चौघड़िया सूर्योदय के समय में बैठता है वह पहिला समझना चाहिये, पीछे उस के उतरने के बाद उस वार से छठे चार का चौघड़िया बैठता है वह दूसरा समझना चाहिये, पीछे उस के उतरने के बाद उस ( छठे ) बार से छठे वार का चौघड़िया बैठता है, यही क्रम आगे भी रविवार के दिन पहिला उद्वेग नामक चौघड़िया है उस के शुक्र का चल नामक चौघड़िया बैठता है, इसी अनुक्रम से प्रत्येक वार के दिन भर का चौघड़िया जान लेना चाहिये, एक चौघड़िया डेढ़ घण्टे तक रहता है अर्थात् सबेरे के छः बजे से ले कर शाम के छः बजे तक बारह घण्टे में आठ चौघड़िये व्यतीत होते हैं, इन में से - अमृतः शुभः लाभ और चल; ये चार चौघड़िये उत्तम तथा उद्वेग; रोग और काल; ये तीन चौघड़िये निकृष्ट हैं, इस लिये अच्छे चौघड़ियों में शुभ काम को करना रात्रि का चौघड़िया || शुभ अमृत चल जैनसम्प्रदाय शिक्षा || दिन का चौघड़िया || बुध लाभ अमृत काल मङ्गल काल लाभ उद्वेग शुभ अमृत चल रोग काल शुभ रोग उद्वेग चल गुरु शुभ रोग उद्वेग चल लाभ शुभ अमृत चल रोग काल लाभ उद्वेग अमृत काल शुक्र चल लाम अमृत काल चल रोग शुभ रोग उद्वेग बुध गुरु शुक्र उद्वेग अमृत रोग देखो ! समझना चाहिये, जैसे उतरने के पीछे रवि से छठे काल काल उद्वेग शनि काल शुभ रोग उद्वेग चल लाभ शुभ उद्वेग अमृत चल चाहिये लाभ शुभ 丽丽啷爽啊西丽丽丽 शनि लाभ उद्वेग अमृत चल रोग काल शुभ असृत रोग लाभ ||

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