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चतुर्थ अध्याय ॥
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देखो ! शारीरिक विद्या के जाननेवाले डाक्टरों का कथन है कि धरन अथवा पेचोंटी नाम का कोई भी अवयव शरीर में नहीं है और न नाभि के बीच में इस नाम की कोई गांठ है और विचार कर देखने से डाक्टरों का उक्त कथन बिलकुल सत्य प्रतीत होता है', क्योंकि किसी ग्रन्थ में भी धरन का स्वरूप वा लक्षण आदि नहीं देखा जाता है, हां केवल इतनी बात अवश्य है कि-रगों में वायु अस्तव्यस्त होती है और वह वायु किसी २ के मसलने से शान्त पड़ जाती है, क्योंकि वायु का धर्म है कि मसलने से तथा सेक करने से शान्त हो जाती है, परन्तु पेट के मसलने से यह हानि होती है कि- पेट की रगें नाताकत (कमजोर) हो जाती हैं, जिस से परिणाम में बहुत हानि पहुँचती है, इस लिये धरन के झूठे ख्याल को छोड़ देना चाहिये क्योंकि शरीर में धरन कोई अवयव नहीं है ।
अतीसार रोग में आवश्यक सूचना - दखों के रोग में खान पान की बहुत ही सावधानी रखनी चाहिये तथा कभी २ एकाध दिन निराहार लंघन कर लेना चाहिये", यदि रोग अधिक दिन का हो जावे तो दाह को न करनेवाली थोड़ी २ खुराक लेनी चाहिये, जैसे-चावल और साबूदाना की कुटी हुई घाट तथा दही चावल इत्यादि ।
पथ्य - इस रोग में - वमन (उलटी) का लेना, लंघन करना, नींद लेना, पुराने चावल, मसूर, तूर (अरहर), शहद, तिल, बकरी तथा गाय का दूध, दही, छाछ, गाय का घी, बेल का ताज़ा फल, जामुन, कबीठ, अनार, सब तुरे पदार्थ तथा हलका भोजन इत्यादि पथ्य है" ।
कुपथ्य -- इस रोग में - खान, मर्दन, करड़ा तथा चिकना अन्न, कसरत, सेक, नया अन्न, गर्म वस्तु, स्त्रीसंग, चिन्ता, जागरण करना, बीड़ी का पीना, गेहूँ, उड़द, कच्चे आम,
१- क्योंकि प्रथम तो उन लोगों का इस विषय में प्रत्यक्ष अनुभव है और प्रत्यक्ष अनुभव सब ही को मान्य होता है और होना ही चाहिये और दूसरे -जय वैद्यक आदि अन्य प्रन्थ भी इस विषय में वही साक्षी देते हैं तो भला इस में सन्देह होने का ही क्या काम है ॥
२- अस्तव्यस्त होती है अर्थात् कभी इकट्ठी होती है और कभी फैलती है ॥
३-पेट के मसलने से प्रथम र नाताकत हो जाती है जिस से परिणाम में बहुत हानि पहुँचती है, दूसरे - यदि वायु की शान्ति के लिये मसला भी जावे तो आदत विगढ जाती है अर्थात् फिर ऐसा अभ्यास पड जाता है कि के मसलाये विना भूख प्यास आदि कुछ भी नही लगती है, इस लिये पेट को विशेष आवश्यकता के सिवाय कभी नहीं मसलाना चाहिये ॥
४- क्योंकि कभी २ एकाध दिन निराहार लघन कर लेने से दोषों का पाचन तथा अग्नि का कुछ दीपन हो जाता है ॥
५-जब अतीसार रोग चला जाता है तब मल के निकले विना मूत्र का साफ उतरना अधोवायु (अपानवायु) की ठीक प्रवृत्ति का होना, अग्नि का प्रदीप्त होना, कोष्ठ (कोठे) का हलका मालूम पड़ना शुद्ध डकार का आना, अन्न और जल का अच्छा लगना, हृदय में उत्साह होना तथा इन्द्रियों का स्वस्थ होना, इत्यादि लक्षण होते हैं ॥