Book Title: Jain Sampradaya Shiksha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 300
________________ पचम अध्याय || ७३५ २१ - श्रवण, धनिष्ठा, रोहिणी, उत्तराषाढ़ा, अभिजित्, ज्येष्ठा और अनुराधा, ये सात नक्षत्र पृथिवी तत्त्व के हैं तथा शुभफलदायी है । २२-मूल, उत्तराभाद्रपद, रेवती, आर्द्रा, पूर्वाषाढा, शतभिषा और आश्लेषा, ये सात नक्षत्र जल तत्त्व के हैं । २३- ये (उक्त ) चौदह नक्षत्र स्थिर कार्यों में अपने २ तत्त्वों के चलने के समय मैं जानने चाहियें । २४ - मघा, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद, खाती, कृतिका, भरणी और पुष्य, ये सात नक्षत्र अभि के है | २५- हस्त, विशाखा, मृगशिर, पुनर्वसु, चित्रा, उत्तराफाल्गुनी और अश्विनी, ये सात नक्षत्र वायु के हैं । २६ - पहिले आकाश, उस के पीछे वायु, उस के पीछे अमि, उस के पीछे पानी और उस के पीछे पृथिवी, इस क्रम से एक एक तत्त्व एक एक के पीछे चलता है । २७ - पृथिवी तत्त्व का आधार गुदा, जल तत्त्व का आधार लिङ्ग, अग्नि तत्त्व का आधार नेत्र, चायुतत्त्व का आधार नासिका ( नाक ) तथा आकाश तत्त्व का आधार कर्ण (कान) है । २८-यदि सूर्य खर में भोजन करे तथा चन्द्र खर में जल पीछे और बाई करवट सोवे तो उस के शरीर में रोग कभी नही होगा । २९ - यदि चन्द्र खर में भोजन करे तथा सूर्य स्वर में जल पीवे तो उस के शरीर में रोग अवश्य होगी । ३०–चन्द्र खर में शौच के लिये ( दिशा मैदान के लिये ) जाना चाहिये, सूर्यखर में मूत्रोत्सर्ग (पेशाब) करना चाहिये तथा शयन करना चाहिये । " ३१ - यदि कोई पुरुष खरों का ऐसा अभ्यास रक्खे कि उस के चन्द्र खर में दिन का उदय हो ( दिन निकले ) तथा सूर्य खर में रात्रि का उदय हो तो वह पूरी अवस्था को प्राप्त होगा, परन्तु यदि इस से विपरीत हो तो जानना चाहिये कि मौत समीप ही है। ३२- ढाई २ घड़ी तक दोनों ( सूर्य और चन्द्र ) खर चलते है और तेरह श्वास तक सुखमना स्वर चलता है । ३३- यदि अष्ट प्रहर तक ( २४ घण्टे ही चलता रहे तो तीन वर्ष की आयु जाननी चाहिये । अर्थात् रात दिन ) सूर्य खर में वायु तत्त्व १- यदि कोई पुरुष पाँच सात दिन तक बराबर इस व्यवहार को करे तो वह अवश्य रुग्ण ( रोगी ) हो जावेगा, यदि किसी को इस विषय में संगय ( शक ) हो तो वह इस का वर्ताव कर के निश्चय कर ले | २- विपरीत हो, अर्थात् सूर्य खर मे दिन का उदय हो तथा चन्द्र खर में रात्रि का उदय हो ॥

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