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नैनसम्प्रदायशिक्षा ||
नहीं हो सकती है, हां यह बेशक ठीक है कि आहार में कुछ घृत तथा दुग्ध आदि का उपयोग अवश्य करना चाहिये कि जिस से गर्म और गर्भिणी के दुर्वलता न होने पावे, परन्तु मात्रा से अधिक आहार तो मूल कर भी नहीं करना चाहिये, क्योंकि मात्रा से अधिक किया हुआ आहार न केवल गर्भिणी को ही हानि पहुंचाता है किन्तु गर्भस्य सन्तान को भी अनेक प्रकार की हानियां पहुंचाता है, इस के सिवाय अधिक आहार से गर्मस्थिति की प्रारम्भिक अवस्था में ही कभी २ स्त्री को ज्वर आने लगता है तथा बमन भी होने लगते हैं, यदि गर्भवती स्त्री गर्भावस्था में शरीर की अच्छी तरह से सम्भाल रक्खे तो उस को प्रसव समय में अधिक वेदना नहीं होती है, भारी पदार्थों का भोजन करने से अजीर्ण हो कर दस्त होने लगते हैं जिस से गर्म को हानि पहुंचने की सम्भावना होती है, केवल इतना ही नहीं किन्तु असमय में प्रसूत होने का भी भय रहता है, गर्भवती को ठंडी खुराक भी नहीं खानी चाहिये क्योंकि ठंढी खुराक से पेट में वायु उत्पन्न हो कर पीड़ा उठती है, तेलवाला तथा लाल मिचों से वधारा ( छौका) हुआ शाक भी नहीं खाना चाहिये क्योंकि इस से खांसी हो जाती है और खांसी हो जाने से बहुत हानि पहुंचती है, अगर्भवती (विना गर्मवाली) स्त्री की अपेक्षा गर्भवती स्त्री को बीमार होने में देरी नहीं लगती है इस लिये जितने आहारका पाचन ठीक रीति से हो सके उतना ही आहार करना चाहिये, यद्यपि गर्भवती स्त्री को पौष्टिक ( पुष्टि करनेवाली ) खुराक की बहुत आवश्यकता है इस लिये उस को पौष्टिक खुराक लेनी चाहिये, परन्तु जिस से पेट अधिक तन जावे और वह ठीक रीति से न पच सके इतनी अधिक खुराक नहीं लेनी चाहिये, गर्भवती स्त्री के उपवास करने से खी और बालक दोनों को हानि पहुंचती है अर्थात् गर्भ को पोषण न मिलने से उसका फिरना बंद हो जाता है तथा वह सुस्त पड़ जाता है तथा गर्भवती स्त्री जब आवश्यकता के अनुसार आहार किये हुए रहती है उस समय गर्भ जितना फिरता है उतना उपवास के दिन नहीं फिरता है क्यों कि वह पोषण के लिये बल मारता है (नोर लगाता है ) तथा थोड़ी जाता है, इस लिये गर्भवती स्त्री को उपवास नहीं करना पन भी नहीं करना चाहिये, दोहद होने पर भी मन को काबू में रखना चाहिये जो पदार्थ हानिकारक न हो वही खाना चाहिये किन्तु जो अपने मनमें आवे वही खा लेने से हानि होती है, गर्भिणी को सदा हलकी खुराक लेनी चाहिये किन्तु जिस स्त्री का शरीर जोरावर और पुष्कल ( पूरा, काफी ) रुधिर से युक्त हो उस को तो यथाशक्य कांजी, दूध, घी और वनस्पति आदि के हलके आहार पर ही रहना चाहिये, गर्म खुराक, खट्टा पदार्थ, कच्चा मेवा, व्यति खारा, अति तीखा, रूखा, ठंढा, अति कडुआ, बिगड़ा हुआ. अर्थात् अधकचा अथवा जला हुआ, दुर्गन्धयुक्त, वातल (वादी करनेवाला ) - पदार्थ,
देरतक चल मारकर स्थिर हो चाहिये, खुराक में अनियमित