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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।। और उन के कथनानुकूल लक्ष्मणपाल के क्रम से (एक के पीछे एक) तीन लड़के उत्पन्न हुए, जिन का नाम लक्ष्मणपाल ने यशोधर, नारायण और महीचन्द रक्खा, जब ये तीनों पुत्र यौवनावस्था को प्राप्त हुए तव लक्ष्मणपाल ने इन सब का विवाह कर दिया, उन में से नारायण की स्त्री के जब गर्मस्थिति हुई तब प्रथम जापा (प्रसूत) कराने के लिये नारायण की स्त्री को उस के पीहरवाले ले गये, वहाँ जाने के बाद यथासमय उस के एक जोड़ा उत्पन्न हुआ, जिस में एक तो लड़की थी और दूसरा सर्पाकृति (साँप की शकलबाला) लड़का उत्पन्न हुआ था, कुछ महीनों के बाद जब नारायण की स्त्री पीहर से सुसराल में आई तब उस जोड़े को देखकर लक्ष्मणपाल आदि सब लोग अत्यन्त चकित हुए तथा लक्ष्मणपाल ने अनेक लोगों से उस साकृति बालक के उत्पन्न होने का कारण पूछा परन्तु किसी ने ठीक २ उस का उत्तर नही दिया (अर्थात् किसी ने कुछ कहा और किसी ने कुछ कहा), इस लिये लक्ष्मणपाल के मन में किसी के कहने का ठीक तौर से विश्वास नहीं हुआ, निदान वह बात उस समय यों ही रही, अब साकृति बालक का हाल सुनिये कि वह शीत ऋतु के कारण सदा चूल्हे के पास आकर सोने लगा, एक दिन भवितव्यता के वश क्या हुआ कि वह सपाकृति बालक तो चूल्हे की राख में सो रहा था और उसकी बहिन ने चार घड़ी के तड़के उठ कर उसी चूल्हे में अग्नि जला दी, उस अमि से जलकर वह सपाकृति बालक मर गया और मर कर व्यन्तर हुआ, तब वह व्यन्तर नाग के रूप में वहाँ आकर अपनी बहिन को बहुत धिक्कारने लगा तथा कहने लगा कि-"जव तक मैं इस व्यन्तरपन में रहूंगा तब तक लक्ष्मणपाल के वंश में लड़कियां कभी सुखी नहीं रहेंगी अर्थात् शरीर में कुछ न कुछ तकलीफ सदा ही बनी रहा करेगी। इस प्रसंग को सुनकर वहाँ बहुत से लोग एकत्रित (जमा) हो गये और परस्पर अनेक प्रकार की बातें करने लगे, थोड़ी देर के बाद उन में से एक मनुष्य ने जिस की कमर में दर्द हो गया था इस व्यन्तर से कहा कि-"यदि तू देवता है तो मेरी कमर के दर्द को दूर कर दे" तब उस नागरूप व्यन्तर ने उस मनुष्य से कहा कि-"इस लक्ष्मणपाल के घर की दीवाल (भीत) का तू स्पर्श कर,तेरी पीड़ा चली जावेगी" निदान उस रोगी ने लक्ष्मणपाल के मकान की दीवाल का स्पर्श किया और दीवाल का स्पर्श करते ही उस की पीड़ा चली गई, इस प्रत्यक्ष चमत्कार को देख कर लक्ष्मणपाल ने विचारा कि यह नागरूप में कब तक रहेगा अर्थात् यह तो वास्तव में व्यन्तर है, अभी अदृश्य हो जावेगा, इस लिये इस से वह वचन ले लेना चाहिये कि जिस से लोगो का उपकार हो, यह विचार कर लक्ष्मणपाल ने उस नागरूप ज्यन्तर से कहा कि-'हे नागदेव! हमारी सन्तति (औलाद ) को कुछ वर देओ कि जिस से तुम्हारी कीर्ति इस संसार में बनी रहे" लक्ष्मणपाल की बात को सुन कर नागदेव ने उन से कहा कि-"वर दिया" "वह वर यही है कि-तुम्हारी