________________
-'-..
चतुर्थ अध्याय ॥ २-सतत-वारह घण्टे के अन्तर से आनेवाले तथा दिन में और राति. समय आनेवाले ज्वर को सतत कहते हैं, इस ज्वर का दोष रक्त (खून ) नामक रहता है। ___३-अन्येशुष्क (एकान्तरा)-यह ज्वर सदा २४ घण्टे के अन्तर से ..
अर्थात् प्रतिदिन एक वार चढता और उतरता है', यह ज्वर मांस नामक धातु में र. ___-तेजरा-यह ज्वर १८ घण्टे के अन्तर से आता है अर्थात् वीच में ए.
नहीं आता है, इस को तेजरा कहते हैं परन्तु इस ज्वर को कोई आचार्य एकान्ताः है, यह ज्वर मेद नामक धातु में रहता है। ।
५-चौथिया यह ज्वर ७२ घण्टे के अन्तर से माता है अर्थात् बीच में है न आकर तीसरे दिन आता है, इस को चौथिया ज्वर कहते हैं, इस का दोप (हाड़) नामक धातु में तथा मज्जा नामक धातु में रहता है।
इस ज्वर में दोष मिन्न २ धातुओं का आश्रय लेकर रहता है इसलिये इस . वैद्यजन रसगत, रक्तगत, इत्यादि नामों से कहते हैं, इन में पूर्व २ की अपेक्षा उ अधिक भयंकर होता है, इसी लिये इस अनुक्रम से अस्थि तथा मज्जा पातु में गय (प्राप्त हुआ) चौथिया ज्वर अधिक भयङ्कर होता है, इस ज्वर में जब दोष : पहुँच जाता है तव प्राणी अवश्य मर जाता है।
अव विषमज्वरों की सामान्यतया तथा प्रत्येक के लिये मिन्न २ चिकित्सा लिखते • १-क्योंकि दोप के प्रकोप का समय दिन और रातभर में (२४ घण्टे में) दो चार आता है।
२-इस मै दिन वा रात्रि का नियम नहीं है कि दिन ही मे चढे वा रात्रि में ही बढे किन्तु २४ नियम है।
३-अर्थात तीसरे दिन भाता है, इस में ज्वर के भाने का दिन भी ले लिया जाता है अर्थात दिन आता है उस दिन समेत तीसरे दिन पुनः आता है ।
४-तीसरे दिन से तात्पर्य यहा पर ज्वर थाने के दिन का भी परिगणन कर के चौथे दिन क्योंकि ज्वर माने के दिन का परिगणन कर के ही इस का नाम बार्षिक पा चौथिया रक्खा गया:
५-इस ज्वर में अर्थात् विषमज्वर मे ॥ ६-अर्थात् आश्रय की अपेक्षा से नाम रसते है, जैसे-सन्तत को रसगत, सतत को रकगत, मा को मांसगत, तेजरा को मेदोगत तथा बौयिया को मज्जास्थिगत कहते हैं।
-अर्थात् सन्तत से सतत, सतत से अन्येशुष्क, मन्येशुष्क से तेजरा और तेजरे से चौथिया। भयकर होता है ॥
८ अर्थात् सब की अपेक्षा चौथिया ज्वर अधिक भयकर होता है । ९-सम्पूर्ण विषमज्वर सनिपात से होते हैं परन्तु इन में जो दोष अधिक हो उन में उसी : प्रधानता से चिकित्सा करनी चाहिये, विषमज्वरों में भी देह का ऊपर नीचे से (वमन और विरे द्वारा) शोधन करना चाहिये तथा लिग्ध और उष्ण अन्नपानों से इन (विषम) ज्वरों को जीतना चा