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चतुर्थ अध्याय ॥
१६७ करती है, इस का प्रत्यक्ष प्रमाण यही है कि उस जनसमूह के द्वारा विगड़ी हुई उस खराव हवा में से निकल कर जब बाहर खुली हवा में जाते है तब वह घबड़ाहट दूर हो कर मन प्रफुल्लित होता है, इस बात का अनुभव प्रत्येक मनुष्य ने किया होगा तथा कर भी सकता है। __घर की हवा शुद्ध है अथवा विगड़ी हुई है, इस का निश्चय करने के लिये सहन उपाय यही है कि बाहर की शुद्ध खुली हुई हवा में से घर में जाने पर यदि कुछ मन को वह हवा अच्छी न लगे अर्थात् मन को अच्छी न लगने वाली कुछ दुर्गन्धिसी मालम पड़े तो समझ लेना चाहिये कि-घर के भीतर की हवा चाहिये जैसी शुद्ध नहीं है। शुद्ध वातावरण की हवा के १००० भागों में . भाग कार्वोनिक एसिड ग्यस का है। यदि घर की हवा में यह परिमाण कुछ अधिक भी हो अर्थात् तक हो तब तक आरोग्यता को हानि नहीं पहुँचती है परन्तु यदि इस परिमाण से एक अथवा इस से भी विशेष माग बढ़ जावे तो उस हवावाले मकान में रहनेवाले मनुष्यों को हानि पहुँचती है, इस हानिकारक हवा का अनुमान बाहर से घर में आने पर मन को अच्छी न लगनेवाली दुर्गन्धि आदि के द्वारा ही हो सकता है। यह चतुर्थ अध्याय का वायुवर्णन नामक द्वितीय प्रकरण समाप्त हुमा ॥
। तृतीय प्रकरण-जल वर्णन ॥ .
पानी की आवश्यकता॥ जीवन को कायम रखने के लिये आवश्यक वस्तुओं में से दूसरी वस्तु पानी है, वह पानी जीवन के लिये अपने उसी प्रवाही रूप में आवश्यक है यह नहीं समझना चाहिये किन्तु-खाने पीने आदि के दूसरे पदार्थों में भी पानी के तत्व रहा करते है जो कि पानी की आवश्यकता को पूरा करते हैं, इस से यह बात और भी प्रमाणित होती है कि जीवन के लिये पानी बहुत ही आवश्यक वस्तु है, देखो। छोटे बालकों का केवल दूध से ही पोषण होता है वह केवल इसी लिये होता है कि-दूध में भी पानी का अधिक भाग है, केवल यही कारण है कि-दूधसे पोषण पानेवाले उन छोटे चालकों को पानी की आवश्यकता नहीं रहती है, इस के सिवाय अपने शरीर में स्थित रस रक और मांस आदि धातुओं में भी मुख्य भाग पानी का है, देखो। मनुष्य के शरीर का सरासरी बजन यदि ७५ सेर गिना जाये तो उस में ५६ सेर के करीब पानी अर्थात् प्रवाही तत्त्व माना जायगा, इसी प्रकार जिस धान्य और बनस्पति से अपने शरीर का पोषण होता है वह भी