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३६६ . जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
इन अठारहों विषयों में से बहुत से विषयों का विवरण हम विस्तारपूर्वक पहिले भी कर चुके हैं, इसलिये यहां पर इन अठारहों विषयों का वर्णन संक्षेप से इस प्रकार से किया जायगा कि इन में से प्रत्येक विषय से कौन २ से रोग उत्पन्न होते हैं, इस वर्णन से पाठक गणों को यह बात ज्ञात हो जायगी कि शरीर को अनेक रोगों के योग्य बनानेबाले कारण कौन २ से हैं।
१-हवा-अच्छी हवा रोग को मिटाती है तथा खराव हवा रोग को उत्पन्न करती है, खराब हवा से मलेरिया अर्थात् विषम जीर्ण ज्वर नामक बुखार, दस्त, मरोड़ा, हैना, कामला, आधाशीसी, शिर का दुखना ( दर्द), मंदामि और अजीर्ण आदि रोग उत्पन्न होते हैं।
बहुत ठंडी हवा से खांसी, कफ, दम, सिसकना, शोथ और सन्धिवायु आदि रोग उत्पन्न होते है।
बाग बहारी अर्थात् फूल टट्टी-बाग वहारी की भी वर्तमान समय में वह चर्चरी है कि-रंगीन कागज और भवरख (मोडल) के फूलों के स्थान में (यद्यपि वे भी फजूल खची में कुछ कम नहीं थे) हुडी, नोट, चादी सोने की कटोरियां, बादाम, रुपये और अशर्फियों को तख्तामें लगाने की नौवत मा पहुची । यों तो सब ही लोग अपने रुपये और माल की रक्षा करते हैं परन्तु हमारे देशभाई अपने द्रव्य को आंखो के सामने खड़े होकर खुशी से लुटवा देते हैं और द्रव्यको खर्च कर के भी कुछ लाभ नहीं उठाते हैं, हा यह तो अवश्यमेव सुनने में आता है कि अमुक लाला या साहूकार की वरात में फूलटट्टी अच्छी थी, हरतरह बचाई गई परन्तु न बची, बडकीवालेके सामने तक न पहुंचने पाई कि फूल रही छूट गई, अब प्रथम तो यही विचार करने का स्थान है कि विवाह के कार्य की प्रसन्नता के पहिले लुटने की अशुभ वाणी का मुंह से निकलना (कि अमुक को फूल टटी छट गई) कैसा बुरा है। इसके सिवाय इस में कभी २ लट्ठ भी चल जाते हैं, जब टोपी तथा पगडी उतर जाती है तब वह फूल हाथ मे भाते हैं मानो लूटनेवालों की प्रतिष्ठा के जाने पर कुछ मिलता है, आपस में दगा हो जाने से बहुधा मेजिष्ट्रेट तक भी नौबत पहुँचती है सब से बडी शोचनीय बात यह है कि विवाह जैसे शुभ कार्य के आरम्भ ही में गमी का सब सामान करना पडता है।
आतिशवाजी-आतिशवाजी से न तो कोई सासारिक ही लाम है और न पारलौकिक ही है, परन् वर्षों के उपार्जन किये हुए धन की क्षणमात्र में जला कर राख की देरी का बना देना है, इस में भीडभाड भी इतनी हो जाती है कि एक एक के ऊपर दश दश गिरते है, एक इधर दौडता है, एक उधर दोडता है इस से यहां तक धकमधका मच जाती है कि बहुधा लोग वेदम हो जाते हैं, तमाशा यह होता है किकिसी के पैर की उँगली पिची, किसी की डाडी जी, किसी की भाओं तथा मूछो का सफाया हुआ, किसी का दुपा तथा किसी का अंगरखा जल गया तथा किसी २ के हाथ पॉव भुन गये, इस से बहुधा मकानो के छप्परों में भी आग लग जाती है कि जिस से चारो ओर हाहाकार मच जाता है और उस से अन्यत्र भी भाग लगने के द्वारा बहुधा अनेक हालिया हो जाती है, कभी २ मनुष्य तथा पशु भी