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जैनसम्प्रदायशिक्षा ||
धनहीन पुरुष सदा दुःखी ही रहता है और सब लोग उस को अल्पबुद्धि का घर ( मूर्ख) समझते हैं तथा धनहीन पुरुष का किया हुआ कोई भी काम सिद्ध नहीं होता है - किन्तु उस के सब काम नष्ट हो जाते हैं-जैसे ग्रीष्म ऋतु में छोटी २ नदियां सूख जाती है ॥ ११६ ॥
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धनी सबहि तिय जीत ही, सभा जु वचन विशाल ॥ उद्यमि लक्ष्मिहिँ जीतही, साधु सुवाक्य रसाल ॥ ११७ ॥ धनवान् पुरुष स्त्रियों को जीत लेता है, वचनों की चतुराईवाला पुरुष सभा को जीत लेता है, उद्यम करने वाला पुरुष लक्ष्मी को जीत लेता है और मधुर वचन बोलने वाला पुरुष साधु जनों को जीत लेता है ॥ ११७ ॥
दीमक मधुमाखी छत्ता, शुक्ल पक्ष शशि देख ॥ राजद्रव्य आहार ये, थोड़े होत विशेख ॥ ११८ ॥
दीमक ( उदई ), मधुमक्खी का छता, शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा, राजाओं का धन और
आहार, ये पहिले थोड़े होकर भी पीछे वृद्धि को प्राप्त हो जाते हैं ॥ ११८ ॥
धन संग्रह पथ चलन अरु, गिरि पर चढ़न सुजान ॥ धीरे धीरे होत सब, धर्म काम हू मान ॥ ११९ ॥
हे सुजान ! धन का संग्रह, मार्ग का चलना, पर्वत पर चढना तथा धर्म और काम आदि का सेवन, ये सब कार्य धीरे धीरे ही होते हैं ॥ ११९ ॥
अञ्जन क्षयहिँ विठोकि नित, दीमक वृद्धि विचार ॥
बन्ध्य दिवस नहिँ कीजिये, दान पठन हित कार ॥ १२० ॥
अंजन के क्षय और दीमक के सञ्चय को देखकर - मनुष्य को चाहिये कि दान, पठन और अच्छे कार्यों के द्वारा दिन को सफेल करे ॥ १२० ॥
क्रिया कष्ट करि साधु हो, विन क्षत होवै शूर ॥ मद्य पिये नारी सती, यह श्रद्धा तज दूर ॥ १२१ ॥ क्रियाकष्ट करके साधु वा महात्मा हो सकता है, विना घाव के भी शूर वीर हो
१ - इस दोहे का सारांग यही है कि बुद्धिमान पुरुष को सब कार्य विचार कर धीरे धीरे ही करने चाहिये क्योंकि धनसंग्रह तथा धर्मोपार्जन आदि कार्य एकदम नहीं हो सकते हैं ॥
२ - देखिये भजन नेत्र में ज़रा सा डाला जाता है लेकिन प्रतिदिन उस का थोडा २ खर्च होने से पहाड़ों के पहाड नेत्रों में समा जाते है-इसी प्रकार दीमक ( अतुविशेष ) थोडा २ वल्मीक का संग्रह करता है तो भी जमा होते २ वह बहुत वडा वल्मीक वन जाता है-इसी बात को सोचकर मनुष्य को प्रतिदिन यथाशक्ति दान, अध्ययन और शुभ कार्य करना चाहिये क्योंकि उक्त प्रकार से घोटा २ करने पर भी कालान्तर मैं उनका बहुत चढा फल दीख पड़ेगा ॥ .