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पश्चम अध्याय ||
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बदले अनेक हानियाँ कर बैठते हैं, अस्तु, इन्हीं सब बातों को विचार कर तथा गृहस्थ जनों को भी इस विद्या का कुछ अभ्यास होना आवश्यक समझ कर उन ( गृहस्थों) से सिद्धे हो सकने योग्य इस विद्या का कुछ विज्ञान हम इस प्रकरण में लिखते है, माशा है कि-गृहस्थ जन इस के अवलम्बन से इस विद्या के अभ्यास के द्वारा लाभ उठावेंगे, क्योंकि -- इस विद्या का अभ्यास इस भव और पर भव के सुख को निःसन्देह प्राप्त करा सकता है ॥ स्वरोदय का स्वरूप तथा आवश्यक नियम ॥
१ -- नासिका के भीतर से जो श्वास निकलता है उस का नाम खर है, उस को स्थिर चित्त के द्वारा पहिचान कर शुभाशुभ कार्यों का विचार करना चाहिये ।
२-खर का सम्बन्ध नाड़ियों से है, यद्यपि शरीर में नाड़ियाँ बहुत हैं परन्तु उन में से २४ नाड़ियाँ प्रधान हैं तथा उन २४ नाड़ियों में से नौ नाड़ियाँ अति प्रधान हैं तथा उन नौ नाड़ियों में भी तीन नाड़ियाँ अतिशय प्रधान मानी गई हैं, जिन के नामइङ्गला, पिङ्गला और सुषुम्ना ( सुखमना ) हैं, इन का वर्णन आगे किया जावेगा ।
३–मरण रखना चाहिये कि - मौंगों (भँवारों ) के बीच में जो चक्र है वहाँ से श्वास का प्रकाश होता है और पिछली बक नाल में हो कर नाभि में जा कर ठहरता है ।
४ - दक्षिण अर्थात् दाहिने ( जीमणे ) तरफ जो श्वास नाक के द्वारा निकलता है उस को इङ्गला नाड़ी वा सूर्य स्वर कहते है, बाम अर्थात् बायें (डावी ) तरफ जो श्वास नाक के द्वारा निकलता है उस को पिङ्गला दोनों तरफ ( दाहिने और बायें तरफ अर्थात् उक्त बीच में अर्थात् दोनों नाड़ियों के द्वारा जो खैर चलता है उस
नाड़ी वा चन्द्र दोनों नाड़ियों
खर कहते हैं तथा ( दोनों खरों ) के
को सुखमना नाड़ी
( खर) कहते है, इन में से जब बायाँ स्वर चलता हो तब चन्द्र का उदय जानना चाहिये तथा जब दाहिना खर चलता हो तब सूर्य का उदय जानना चाहिये ।
१ - जरूरी ॥
२-सफल वा पूरा ॥
३- प्रत्येक मनुष्य जब श्वास लेता है तब उस की नासिका के दोनों छेदों में से किसी एक छेद से प्रचण्डतया. ( तेजी के साथ ) श्वास निकलता है तथा दूसरे छेद से मन्दतया ( धीरे २ ) श्वास निकलता है अर्थात् दोनों छेदों में से समान श्वास नहीं निकलता है, इन में से जिस तरफ का श्वास तेजी के साथ अर्थात् अधिक निकलता हो उसी खर को चलता हुआ खर समझना चाहिये, दाहिने छेद में से जो वेग से श्वास निकले उसे सूर्य खर कहते हैं, बायें छेद में से जो अधिक श्वास निकले
हैं तथा दोनों छेदों में से जो समान श्वास निकले में से अधिक निकले उसे सुखमना खर कहते हैं, लता है जब कि स्वर बदलना चाहता है, अच्छे नीरोग मनुष्य के दिन राव में घण्टे घण्टे भर तक चन्द्र
अथवा कभी एक में से अधिक परन्तु यह ( सुखमना ) खर
उसे चन्द्र स्वर कहते निकले और कभी दूसरे प्रायः उस समय में च
खर और सूर्य खर अदल बदल होते हुए चलते रहते हैं परन्तु रोगी मनुष्य के यह नियम नहीं रहता है। अर्थात उस के खर में समय की न्यूनाधिकता ( कमी ज्यादती ) भी हो जाती है ॥