Book Title: Jain Sampradaya Shiksha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 298
________________ पश्चम अध्याय || खरों के द्वारा परदेशगमेन का विचार || १ - जो पुरुष चन्द्र खर में दक्षिण और पश्चिम दिशा में परदेश' को जावेगा वह पर देश से आ कर अपने घर में सुख का भोग करेगा । . २ - सूर्य स्वर में पूर्व और उत्तर की तरफ परदेश को जाना शुभकोरी है । पूर्व और उत्तर की तरफ परदेश को जाना अच्छा नहीं है । ३ - चन्द्र खर में ४- सूर्य खर में दक्षिण और पश्चिम की तरफ परदेश के जाना अच्छा नहीं है । ५- ऊर्ध्व ( ऊँची ) दिशा चन्द्र खर की है इस लिये चन्द्र खर में पर्वत आदि ऊर्ध्व दिशा में जाना अच्छा है। ६ - पृथिवी के तल भाग का स्वामी सूर्य है, इस भाग में (नीचे की तरफ ) जाना अच्छा है, परन्तु में नाना अच्छा नही है || भाग " परदेश में स्थित मनुष्य के विषय में प्रश्नविचार || ७३३ लिये सूर्य स्वर में पृथिवी के तल सुखमना स्वर में पृथिवी के तल १ - प्रश्न करने के समय यदि खैर में जल तत्त्व चलता हो तो प्रश्नकर्त्ता से कह देना चाहिये कि - सब कामों को सिद्ध कर के वह ( परदेशी ) शीघ्र ही आ जावेगा । २- यदि प्रश्न करने के समय स्वर में पृथिवी तत्त्व चलता हो तो प्रश्नकर्त्ता से कह देना चाहिये कि वह पुरुष ठिकाने पर बैठा है और उसे किसी बात की तकलीफ नहीं है । ६-यदि प्रश्न करने के समय स्वर में वायु तत्त्व चलता हो तो प्रश्नकर्त्ता से कह देना चाहिये कि वह पुरुष उस स्थान से दूसरे स्थान को गया है तथा उस के हृदय में चिन्ता उत्पन्न हो रही है । ४-यदि प्रश्न करने के समय खर में अभि तत्त्व चलता हो तो प्रश्नकर्त्ता से कह देना चाहिये कि - उस के शरीर में रोग है । ५ यदि प्रश्न करने के समय खर में आकाश तत्त्व चलता हो तो प्रश्नकर्ता से कह देना चाहिये कि वह पुरुष मर गया ॥ अन्य आवश्यक विषयों का विचार ॥ १- दूसरे देश में जाना ॥ चाहे जिस स्वर में ॥ १ - कही जाने के समय अथवा नींद से उठ कर ( जाग कर ) विछौने से नीचे पैर रखने के समय यदि चन्द्र खर चलता हो तथा चन्द्रमा का ही चार हो तो पहिले चार पैर ( कदम ) बायें पैर से चलना चाहिये । २ - कल्याणकारी ॥ ३-ठहरे हुए ॥ ४ - "खर में, अर्थात्

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