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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥
दूसरे रोगों से तो व्यक्तिविशेष ( किसी खास ) को ही हानि पहुँचती है परन्तु इस भयंकर रोग से समूह का समूह ही बरन उस से भी अधिक जाति जनसंख्या व देश जनसंख्या ही निकम्मी होकर कुदशा को प्राप्त हो जाती है, सुजनो ! क्या आप को मालूम नहीं है कि यह वही महाभयानक रोग है कि जिस से मनुष्य की सुरत भयावनी तथा नाक कान और आंख आदि इन्द्रियां थोड़े ही दिनों में निकम्मी हो जाती है, उस में विचारशक्ति का नाम तक नहीं रहता है, उस को उत्साह और साहस के स्वप्न में भी दर्शन नहीं होते है, सच पूँछो तो जैसे ज्वर के रहने से तिल्ली - आदि रोग हो जाते है उसी प्रकार बरन उस से भी अधिक इस महाभयंकर रोग के होने से प्रमेह, निर्बलता, वीर्यविकार, अफरा, दमा, खांसी और क्षय आदि अनेक रोग उत्पन्न होते हैं जिन से शरीर की चमक दमक और शोभा जाती रहती है तथा मनुष्य आलसी और क्रोधी बन जाता है तथा उस की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, तात्पर्य लिखने का यही है कि इसी महाभयंकर रोग ने इस भारत को बिलकूल ही चौपट कर दिया, इसी ने लोगों को सभ्य से असभ्य, राजा से रंक (फकीर ) और दीर्घायु से अल्पायु बना दिया, भाइयो । कहां तक गिनाबें सब प्रकार के सुख और वैभव को इसी ने छीन लिया ।
विचार करने लगे होंगे कि वह
नाम को सुनने के लिये अत्यन्त
हमारे पाठकगण इस बात को सुनकर अपने मन में कौन सा महान् रोग बला के समान है तथा उस के विकल होते होंगे, सो हे सज्जनो ! इस महान् रोग को तो आप जैसे सुजन तो क्या किन्तु सब ही जन जानते हैं, क्योंकि प्रतिदिन आप ही सबों के गृहों में इस का निवास हो रहा है, देखो ! कौन ऐसा भारतवर्षीय जन है जो कि वर्तमान समय में इस से न सताया गया हो, जिस ने इस के पापड़ों को न बेला हो, जो इस के दुःखों से घायल होकर न तड़फड़ाता हो, यह वह मीठी मार है कि जिस के लगते ही मनुष्य अपने आप ही सर्व सुखों की पूर्णाहुति देकर मियांमिट्ठू बन जाते है, इस पर मी तुर्रा यह है कि जब यह रोग किसी गृह में प्रवेश करने को होता है तब दो तीन चार अथवा छः मास पहिले ही अपने आगमन की सूचना देता है, जब इस के आगमन के दिन निकट आते है तब तो यह उस गृह को पूर्णरूप से स्वच्छ कराता है, उस गृह के निवासियों को ही नहीं किन्तु उन से सम्बन्ध रखनेवालों को भी कपड़े लत्ते सुथरे पहिनाता है, इस के आगमन की खबर को सुनकर गृह में मंगलाचार होते है, इधर उधर से भाई बन्धु आते है यह सव कुछ तो होता ही है किन्तु जिस रात्रि को इन महारोग का आगमन होता है उस रात्रि को सम्पूर्ण नगर में कोलाहल मच जाता है और उस गृह में तो ऐसा उत्साह होता है कि जिस का पारावार ही नही है अर्थात् दर्बानो पर नौबत झड़ती है, रण्डियां नाच २ कर मुवारक बादें देती है, घूर गोले और आतिशबाज़ी चलती है, पण्डित जन मन्त्रों