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चतुर्थ अध्याय ॥
२९७ रहती है इसलिये उसके द्वारा उभय लोकसम्बंधी कार्यों का विचार कर तुम अपने समय को लौकिक तथा पारलौकिक कार्यों में व्यय कर सफल कर सकते हो।
देखो ! प्रातःकाल चिड़ियां भी कैसी चुहचुहाती, कोयलें भी कूकू करती मैना तोता आदि सब पक्षी भी मानु उस परमेष्ठी परमेश्वर के स्मरण में चित्त लगाते और मनुष्यों को जगाते है, फिर कैसे शोक की बातहै कि हम मनुष्य लोग सब से उत्तम होकर भी पक्षी पखेरू आदि से भी निषिद्ध कार्य करें और उन के लगाने पर भी चैतन्य न हों।
प्रातःकाल का जलपान ॥ ऊपर कहे हुए लाभों के अतिरिक्त प्रातःकाल के उठने से एक यह भी बड़ा लाभ हो सकता है कि प्रातःकाल उठकर सूर्य के उदय से प्रथम थोड़ा सा शीतल जल पीने से बवासीर और ग्रहणी आदि रोग नष्ट हो जाते है।
वैद्यक शास्त्रों में इस (प्रातःकाल के समय में नाके से जल पीने के लिये आज्ञा दी है क्योंकि नाक से जल पीने से बुद्धि तथा दृष्टि की वृद्धि होती है तथा पीनस आदि रोग जाते रहते हैं।
शौच अर्थात् मलमूत्र का त्याग ॥ प्रातःकाल जागकर आधे मील की दूरी पर मैदान में मल का त्याग करने के लिये जाना चाहिये, देखो ! किसी अनुभवी ने कहा है कि-"ओढे सोवै ताजा खाव, पाव कोस मैदान में नावे | तिस घर वैद्य कभी नहिं आवै" इस लिये मैदान में जाकर निर्जीव साफ ज़मीनपर मस्तक को ढांक कर मल का त्याग करना चाहिये, दूसरे के किये हुए मलमूत्र पर मल मूत्र का त्याग नही करना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से दाद खाज और सुजाख आदि रोगों के हो जाने का सम्भव है, मलमूत्र का त्याग करते समय बोलना नहीं
१-इस की यह विधि है कि-ऊपर लिखे अनुसार जागृत होकर तथा परमेष्ठी का ध्यान कर आठ भबलि, अर्थात् आष सेर पानी नाक से नित्य पीना चाहिये, यदि नाक से न पिया जासके तो मुंह से ही पीना चाहिये, फिर आध घण्टे तक वायें कर वट से लेट जाना चाहिये परन्तु निद्रा नहीं लेनी चाहिये, फिर मल मूत्र के त्याग के लिये जाना चाहिये, इस (जलपान) का गुण वैद्यक शास्त्रों में बहुत ही अच्छा लिखा है अर्थात् इस के सेवन से मायु बढ़ता है तथा हरस, शोथ, दस्त, जीर्ण ज्वर, पेट का रोग, कोड़, मेद, मूत्र का रोग, रकविकार, पित्तविकार तथा कान आंख गले और शिर का रोग मिटता है, पानी यद्यपि सामान्य पदार्थ है अर्थात् सब ही की प्रकृति के लिये अनुकूल है परन्तु जो लोग समय विताकर अर्थात् देरी कर उठते हैं उन लोगों के लिये तथा रात्रि में खानपान के त्यागी पुरुषों के लिये एव कफ और वायु के रोगों में समिपात में तथा ज्वर में प्रातःकाल मे जलपान नहीं करना चाहिये, रात्रि में जो खान पान के त्यागी पुरुष हैं उन को यह भी स्मरण रखना चाहिये कि जो लाभ रात्रि में खानपान के त्याग में है उस लाभका हजार या भाग भी प्रात काल के जलपान में नहीं है, इसलिये जो रात के खान पान के त्यागी नहीं है उन को उषापान (प्रात काल मे जलपीना) कर्तव्य है ।
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