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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ इति श्री जैन श्वेताम्बर-धर्मोपदेशक-यतिप्राणाचार्य विवेकलब्धिशिष्य शील: . सौभाग्यनिर्मितः, जैनसम्प्रदायशिक्षायाः ।
द्वितीयोऽध्यायः॥
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कवि ने अपनी बुद्धि के अनुसार डिंगल कविता में बनाये हैं, यद्यपि इन दोहों की कविता ठीक नहीं हैतथापि इन में यह चातुर्य है कि तीन प्रश्नों का उत्तर एक ही वाक्य में दिया है और इन का प्रचार मरुस्थल में अधिक है अर्थात् किसी पुरुष को एक दोहा याद है, किसी को पांच दोहे याद है, किन्तु ये दोहे इकठे कहीं नहीं मिलते थे, इसलिये अनेक सज्जनों के अनुरोध से इन दोहों का अन्वेषण कर उल्लेख किया है अर्थात् बीकानेर के जैनहितवालम ज्ञानमंडार में ये ३९ दोहे प्राप्त हुए थे सो यहा ये लिखे गये हैं- तथा यथाशक्य इन का संशोधन भी कर दिया है और अर्थज्ञान के लिये मक देकर शब्दों का भावार्थ भी लिख दिया है।