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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ धातुओं के योग से मिले हुए पानी से (निस में पारा सोमल और सीसा आदि विपैले पदार्थ गलकर मिले रहते हैं उस नकसे ) भी रोगों की उत्पत्ति होती है ।
३-खुराक-शुद्ध, अच्छी, प्रकृति के अनुकूल और ठीक तौर से सिजाई हुई खुराक के खाने से शरीर का पोषण होता है तथा अशुद्ध, सड़ी हुई, वासी, विगड़ी हुई, कच्ची, रुखी, बहुत ठंढी, बहुत गर्म, भारी, मात्रा से अधिक तथा मात्रा से न्यून खुराक के खाने से बहुत से रोग उत्पन्न होते हैं, इन सव का वर्णन संक्षेप से इस प्रकार है:१-सड़ी हुई खुराक से-कृमि, हैजा, वमन, कुष्ठ (कोढ़), पित्त तथा दस्त आदि
रोग होते हैं।
दर्शनात् हरते चित्र, स्पर्शनात् हरते बलम् ।
मैथुनात् हरते वीर्य, वेश्या प्रत्यक्षराक्षसी ॥१॥ अर्थान् दर्शन से चित्त को, हूने से बल को और मैथुन से वीर्य को हर लेती है, अतः वेश्या सबमुत्र राक्षसी ही है। १॥ यद्यपि सब ही जानते हैं कि इस राक्षसी वेश्ा ने हज़ारों घरों को धूल में मिला दिया है विस पर भी वो वाप और बेटे को साथ में बैठ कर भी कुछ नहीं सूझता है, जह उस की ऑख लगी किचकनाचूर हो जाते है, प्रतिष्टा तथा जवानी को खोकर घदनानी का तौक गले में पहनते हैं, देखो ! हजारों लोग इल के नशे में चूर होकर अपना घर बार वेचकर दो २ दानों के लिये मारे २ फिरते है, बहुत से नादान लोग धन बना कर इन की भेंट चढाते हैं और उनके मातापिता दोरदानों के लिये मारे २ फिरते हैं, सच पूछो तो इस कुकार्य से उन ने जो २ दशा होती है वह सब अपनी करनी का ही निकृष्ट फल है, क्योंकि वे ही प्रत्येक उत्सव अयात् बालकजन्म, नामकरण, मुण्डन, सगाई और विवाह ने तथा इन के सिवाय जन्नाटनी, रासलीला, रामलीला, होली, दिवाली, दाहरा और वसन्तपञ्चमी
आदि पर खुलका २ कर अपने ना जवानों को उन राबतियों की रसभरी आवाज़ तथा मधुरी आँखें दिखलवाते हैं कि जिस से वे बहुधा रण्डीवाज़ हो जाते हैं क्या उन को आतशक और मुजाल आदि बीमारियां घेर लेती हैं, जिन की आग में वे खुद मुनते रहते हैं तथा उन की परसादी अपनी औलाद को भी देकर निराश छोड़ जाते हैं, बहुतसे मूर्ख जन रण्डीयों के नाज नखरे तथा वनाव शृंगार आदि पर ऐसे मोहित हो जाते हैं कि घर की विवाहिता त्रियों के पास तक नहीं जाते हैं क्या उन (विवाहिता खियों) पर नाना प्रकार के दोष रखकर मुँह से घोलना भी अच्छा नहीं समझते हैं, वे बेचारी दुख के कारण रातदिन रोती रहती है, यह भी अनुभव किया गया है नि-बहुधा जो त्रियां महफिल का नाच देख लेती हैं उन पर इसका ऐसा बुरा असर पड़ता है लि-जिस से घर के घर उजड़ जाते हैं, क्योंकिअब वे देखती है कि सम्पूर्ण महफिल के लोग उस रण्डी की ओर टकटकी लगाये हुए उस के नाज़ और नखरों को सह रहे हैं, यहांतक कि जब वह थूक्ने का इरादा करती है तो एक आदमी पीलदान लेकर हाजिर होता है, इसी प्रकार चदि पान खाने की जरूरत हुई तो भी निहायत नाज़ तथा अदव के साथ उपस्थित किया जाता है, इस के सिवाय वह दुष्ट नीचे से ऊपरतक सोने और चांदी के आभूषणों क्या मतलस, गुलबदन और कमरवाव आदि बहुमूल्य बलों के पेसवाज़ को एक एक दिन में चार १ दफे