Book Title: Jain Sampradaya Shiksha
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 307
________________ ७४२ जैनसम्प्रदायशिक्षा || सांखला राजपूत हुए हैं; जिन्हों ने प्रदेशगमनादि के शुभाशुभ सैकड़ों दोहे बनाये हैं, वर्त्तमान में रेल आदि के द्वारा यात्रा करने इस कारण उक्त ( मारवाड़ ) देश में भी शकुनों का प्रचार घट चला जाता है । हमारे देशवासी बहुत से जन यह भी नहीं जानते हैं है तथा अशुभ शकुन कौन से होते हैं, यह बहुत ही शुभाशुभ शकुनों का जानना और यात्रा के समय उन का देखना शकुन ही आगामी शुभाशुभ के ( भले वा बुरे के ) अथवा यों सिद्धि वा असिद्धि तथा सुख वा दुःख के सूचक होते हैं । पाशा आदि गमन करने शकुन दो प्रकार से लिये (देखे) जाते हैं- एक तो रमल के द्वारा वा के द्वारा कार्य के विषय में लिये (देखे) जाते हैं और दूसरे प्रदेशादि को के समय शुभाशुभ फल के विषय में लिये (देखे) जाते हैं, इन्हीं दोनों प्रकार के शकुनों के विषय में संक्षेप से इस प्रकरण में लिखेंगे, इन में से प्रथम वर्ग के शकुनों के विषय में गर्गाचार्य मुनि की संस्कृत में बनाई हुई पाशशकुनावलि का भाषा में अनुवाद कर वर्णन करेंगे, उस के पश्चात् प्रदेशादिगमनविषयक शुभाशुभ शकुनों का संक्षेप से वर्णन करेंगे, आशा है कि--गृहस्थ जन शकुनों का विज्ञान कर इस से लाभ उठावेंगे । शकुनों के विषय में का प्रचार हो गया है गया है और घटता कि-शुभ शकुन कौन से होते लज्जास्पद विषय है, क्योंकि अत्यावश्यक है, देखो ! कि कार्य की समझो जो कुछ कार्य करना हो उस का प्रथम स्थिर मन से विचार करना चाहिये, फिर थोड़े चाँवल, एक सुपारी और दुअन्नी वा चाँदी की अंगूठी आदि को पुस्तक पर भेंटरूप रख कर पौसे को हाथ में ले कर इस निम्नलिखित मन्त्र को सात वार पढ़ना चाहिये, फिर तीन वार पासे को डालना चाहिये तथा तीनों वार के जितने अङ्क हों उन का १ - तीनों लोकों के पूज्य श्री गर्गाचार्य महात्मा ने सत्यपासा केवली राजा अग्रसेन के सामने प्रजाहितकारिणी इस ( शकुनाचली ) का वर्णन संस्कृत गद्य में किया था उसी का भाषानुवाद कर के यहां पर हम ने लिखा है ॥ २ - इस सम्बन्ध का जो द्रव्य इकट्ठा हो जावे उस को ज्ञानखाते में लगा देना योग्य होता है, इस लिये जो लोग देश देशान्तरों में रहते हैं उन को उचित है कि काम काज से छुट्टी पा कर अवकाश के समय में व्यर्थ गप्पें मार कर समय को न गमावें किन्तु अपने वर्ग में से जो पुरुष कुछ पठित हो उस के यहाँ यथायोग्य पॉच सात अच्छे २ ग्रन्थों को मंगवा कर रक्खें और उन को सुना करें तथा स्वय भी बाँचा करें और जो ज्ञानखाते का द्रव्य हो उस से उपयोगी पुस्तको को मँगा लिया करें तथा उपयोगी साप्ताहिक पत्र और' मासिक पत्र भी दो चार मॅगाते रहें, ऐसा करने से मनुष्य को बहुत लाभ होता है ॥ ३-चौपड के पासे के समान काष्ठः पीतल वा दाँत का चौकोना पासा होना चाहिये, जिस में एक, दो, तीन और चार, ये अंक लिखे होने चाहियें ॥

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