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जैनसम्प्रदायशिक्षा ऋतु में शरीर में गर्मी उत्पन्न करनेवाले पौष्टिक पदार्थ खाने को देना चाहिये क्योंकि उस समय शरीर में गर्मी पैदा करने की बहुत आवश्यकता है, उक्त ऋतु में यदि शरीर में गर्मी कम होवे तो तनदुरुस्ती बिगड़ जाती है इसलिये उक्त ऋतु में शरीर में उप्णता कायम रहने के लिये उपाय करना चाहिये, बालक की भूख को कमी मारना नहीं चाहिये क्योंकि मूख का समय बिता देने से मन्दामि आदि रोग हो जाते हैं, इसलिये यही उचित है कि नियम के अनुसार नियत किये हुए समय पर जितनी और जो हजम हो सके उतनी और वही खूब परिपक (पकी हुई ) खुराक खाने को देना चाहिये।
इस जीवनयात्रा के निर्वाह के लिये शरीर को जिन २ तत्वों की आवश्यकता है वे सव तत्त्व एक ही प्रकार की खुराक में से नहीं मिल सकते हैं. इसलिये सर्वदा एक ही प्रकार की खुराक न देकर मिन्न २ प्रकार की खुराक देते रहना चाहिये, एक ही प्रकार की खुराक देने से शरीर को आवश्यक तत्वमी नहीं मिलते है तथा पाचनशक्ति में भी खरात्री पड़ जाती है, जिस खुराक पर वालक की रुचि न हो उसके खाने के लिये आग्रह नहीं करना चाहिये, बालक को खुराक देनेमें आधा घंटा लगाना चाहिये अर्थात् धीरे २ चवा २ के उसे खिलाना चाहिये और धीरे २ चावर के खाने की उस की आदत भी डालना चाहिये किन्तु शीघ्रता से उसे नहीं खिलाना चाहिये और न खाने देना चाहिये, गर्मी वा धूप आदि में से आने के बाद अथवा थकने के बाद कुछ विश्राम ले लेवे तब उसे खाने को देना चाहिये, खाते समय उसे न तो हँसने और न बातें करने देना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से कभी २ पास गले में अटक कर बहुत हानि पहुंचाता है, सो उठने के पीछे तीन घण्टे के बाद और ऊँधने के पीछे एक घण्टे के बाद खुराक देनी चाहिये, इसी प्रकार खानेके पीछे यदि आवश्यकता होतो एक घण्टे के पश्चात् सोने देना चाहिये, ठंढी बिगड़ी हुई
और दुर्गन्धयुक्त खुराक नहीं खाने देनी चाहिये, बहुत खाना अथवा कमखाना, ये दोनों ही नुक्सान करते हैं इस लिये इन से बालक को बचाना चाहिये, भूख लगे विना आग्रह करके बालक को नहीं खिलाना चाहिये, वालक से कम वा अधिक खाने के लिये नहीं कहना चाहिये किन्तु उस को अपनी रुचि के अनुसार खाने देना चाहिये, खुराक के विषय में यह भी स्मरण रखना चाहिये कि जो खुराक जिस कदर पुष्टिकारक हो वह उसी कदर तौलमें कम खाने को देना चाहिये तथा जिस कदर खुराक कम पुष्टि कारक हो उसी कदर वह तौल में अधिक खाने को देना चाहिये, तात्पर्य यह है कि जहांतक हो सके वालकों को खुराक तौल में कम किन्तु पुष्टिकारक देना चाहिये क्योंकि ऐसा न करने से वालक का वल घटता है तथा शरीर भी नहीं बढ़ता है, यह संक्षेप से खुराक के विषय में
१-क्योंकि पुष्टिकारक खुराक तालमें अविक देने से अजीर्ण होकर विकार उत्पन्न होता है और अपुष्टि कारक अथवा कम पुष्टिकारक खुराक तौलमें कम देने से बालक को दुर्वलता सताने लमती है ।