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तृतीय अध्याय ॥
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१७- कर्णरक्षा - (कान की हिफाजत ), बालक के कान ठंढे नहीं होने देना चाहिये, यदि ठंढे होजावें तो कानटोपी पहना देना चाहिये, क्योंकि ऐसा न करने से सर्दी लग कर कान पक जाते हैं और उन में पीड़ा होने लगती है, यदि कमी कान में दर्द होने लगे तो तेल को गर्म कर के कान के भीतर उस तेल की बूंदें डालनी चाहियें, यदि कान बहता हो तो समुद्रफेन को तेल में उवाल कर उस की बूँदें कान में डालनी चाहियें, कान में छिद्र ( छेद ) कराने की रीति नुकसान करती है, क्योंकि कान में छिद्र करके अलंकार ( आभूषण, ज़ेवर) पहनने से अनेक प्रकार के नुकसान हो जाते हैं, इस लिये यह रीति ठीक नहीं है, कान को सलाई आदि से भी करोदना नही चाहिये किन्तु उस (कान) के मैल को अपने आप ही गिरने देना चाहिये क्योंकि कान के करोदने से वह कभी २ पक जाता है और उस में पीड़ा होने लगती है ॥ १८- शीतला रोग से संरक्षा - शीतला निकलने से कभी २ बालक अन्धे, लूले, काने और बहिरे हो जाते हैं तथा उन के तमाम शरीर पर दाग पड़ जाते हैं तथा दागों के पड़ने से चेहरा भी बिगड़ जाता है, इत्यादि अनेक खरावियां उत्पन्न हो जाती हैं, केवल इतना ही नहीं किन्तु कमी २ इस से बालक का मरण भी हो जाता है, सत्य तो यह है कि बालक के लिये इस के समान और कोई बड़ा भय नही है, यह रोग चेपी भी है इसलिये जिस समय यह रोग प्रचलित हो उस समय बालक को रोगवाली जगह पर नहीं ले जाना चाहिये, यदि बालक के टीका न लगवाया हो तो इस समय शीघ्र ही लगवा देना चाहिये, क्योंकि टीका लगवा देने से ऊपर कहीं हुई खराबियों के उत्पन्न होने का भय नहीं रहता है, यदि बालक के दो बार टीका लगवा दिया जावे तो शीतला निकलती भी नहीं है और यदि कदाचित् निकलती भी है तो उसकी प्रबलता (जोर) बिलकुल घट जाती है, इस लिये प्रथम छोटी अवस्था में एक वार टीका लगवा देना चाहिये पीछे सात वा आठ वर्ष की अवस्था में एक बार
फिर दुबारा लगवा देना चाहिये, किन्तु प्रथम छोटी अवस्था में एक वार टीका लगवा देने के बाद यदि सात सात वर्ष के पीछे दो तीन बार फिर लगवा दिया जावे तो और भी अधिक लाभ होता है ।
१ - पाठको ने देखा वा सुना होगा कि अनेक दुष्ट गहने के लोभ से छोटे मच्चों को बहका कर ले जाते हैं तथा उन का जेवर हरण कर बच्चो को मार तक डालते हैं ॥
२- पी अर्थात् वायु के द्वारा उड़कर लगनेवाला ॥
३-छोटी अवस्था मे जितनी जल्द हो सके टीका लगवा देना चाहिये-अर्थात् जिस बालक को कोई रोग न हो तथा हृष्ट पुष्ट हो तो जन्म के १५ दिन के पीछे और तीन महीने के भीतर टीका लगवा देना उचित है, परन्तु दुर्बल और रोगी बालक के जब तक दाँत न निकल आयें तब तक टोका नहीं लगवाना चाहिये,
यह भी स्मरण रखना चाहिये कि टीका लगवाने का सब से अच्छा समय जाड़े की ऋतु है ।
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