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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥
पनघट, मोहरी, नाली, पनाले और पाखाना आदि है, इस लिये इन को नित्य साफ और सुथरे रखना चाहिये ||
६ – कोयले की खानें, लोह के कारखाने, रुई ऊन और रेशम बनने की मिलें तथा धातु और रंग बनाने के कारखाने आदि अनेक कार्यालयों से भी हवा बिगड़ती है, यह तो प्रत्यक्ष ही देखा गया है कि इस प्रकार के कारखानों में कोयलों, रुई और धातुओं के सूक्ष्म रजःकण उड़ २ कर काम करनेवालों के शरीर में जाकर बहुधा उन के श्वास की नली के, फेफड़े के और छाती के रोगों को उत्पन्न कर देते हैं ॥
७- चिलम, हुक्का और चुरटों के पीने से भी हवा बिगड़ती है अर्थात् - यह जैसे पीनेवालों की छाती को हानि पहुँचाता है, उसी प्रकार से बाहर की हवा को भी विगाड़ता है, यद्यपि वर्तमान समय में इस का व्यसन इस आर्यावर्त्त देशमें प्रायः सर्वत्र फैल रहा है, किन्तु - दक्षिण, गुजरात और मारवाड़में तो यह अत्यन्त फैला हुआ है कि - जिस से वहां अनेक प्रकार की बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं |
इन कारणों के सिवाय हवा के विगड़ने के और भी बहुत से कारण हैं जिन को विस्तार के भय से नही लिख सकते, इन सब बातों को समझ कर इन से बचना मनुष्य को अत्यावश्यक है और इन से बचना मनुष्य के स्वाधीन भी है, क्योंकि - देखो । अपने २ कर्मोंकी विचित्रता से जो बुद्धि मनुष्यों ने पाई है उस का ठीक रीति से उपयोग न कर पशुओं के समान जन्म को विताना तथा दैव का भरोसा रखना आदि अनेक बातें मनुष्यों को परिणाम में अत्यन्त हानि पहुँचाती है, इस लिये सुज्ञों ( समझदारों ) का यह धर्म है किहानिकारक बातों से पहिले ही से बच कर चलें और अपनी आरोग्यता को कायम रख कर मनुष्य जन्म के फल को प्राप्त करें, क्योंकि - हानिकारक बातों से बचकर जो मनुष्य नहीं चलते है उन को अपने किये हुए कुकर्मों का फल ऐसा मिलता है कि उन को जन्मभर रोते ही बीतता है, इस प्रकार से अनेक कष्टरूप फल को भोगते २ वे अपने अमूल्य मनुष्यजन्म को कास श्वास और क्षय आदि रोगों में ही बिता कर आधी उम्र में ही इस संसार से चले जाकर अपनी स्त्री और बाल बच्चों आदि को अनाथ छोड़ जाते है, देखो । इस बात को अनेक अनुभवी वैद्यों और डाक्टरों ने सिद्ध कर दिया है कि-यांना सुलफे के पीने वाले सैकड़ों हजारों आदमी आधी उम्र में ही मरते है ।
देखो ! जिस पुरुष ने इस संसार में आकर विद्या नही पढी, धन नहीं कमाया, देश जाति और कुटुम्ब का सुधार नहीं किया और न परभव के साघन रूप ज्ञानसे युक्त व्रत
१ देव का भरोसा रखने वाले जन यह नहीं विचारते हैं कि हमारे कमाने आगे को विगाढ होने के लिये ही हमारी समझमेंसे सबुद्यम की बुद्धि को हर लिया है ॥
२–दत्र चारह युवा पुरुषों को तो हम ने अपने नेत्रों से प्रत्यक्ष ही महा दुर्दशा में मरते देखा है ॥