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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥
रजोदर्शन के समय स्त्री का कर्तव्य ॥
स्त्री को जव ऋतु धर्म प्राप्त हो तब उसे अपनी इस प्रकार से सम्भाल करनी चाहिये कि-जिस प्रकार से ज़ख़मी अथवा दर्दवाले की संभाल की जाती है ।
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रजखला स्त्री को खुराक बहुत ही सादी और हलकी खानी चाहिये क्योंकि खुराक की फेरफार का प्रभाव ऋतु धर्म पर बहुत ही हुआ करता है, शीतल भोजन और वायु का सेवन रजखला स्त्री को नहीं करना चाहिये क्योंकि शीतल भोजन और वायु के सेवन से उदर की वृद्धि और अजीर्ण रोग हो जाता है जो कि सब रोगों का मूल है, एवं गर्म और मसालेदार खुराक भी नहीं खानी चाहिये क्योंकि इस से शरीर में दाह उत्पन्न हो जाता है, बहुत सी अज्ञान स्त्रियां ऋतु धर्म के समय अपनी अज्ञानता से उद्धत (उन्मत्त ) होकर छाछ, दही, नीबू, इमली और कोकम आदि खट्टी वस्तुओं को तथा खांड़ आदि हानिकारक वस्तुओं को खा लेती हैं कि जिस से रजोदर्शन वन्द होकर उन को ज्वर चढ़ जाता है, मस्तक और पीठ के सव हाड़ों में दर्द होने लगता है तथा किसी २ समय पेट में ऐंठन ( खैचतान ) आदि होने लगती है, खांसी हो जाती है, इस प्रकार ऋतु धर्म के समय नियम पूर्वक न चलनेसे अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं, इसलिये ऋतुधर्म के समय खूब सॅभल कर आहार विहार आदि का सेवन करना चाहिये, यदि कमी मूल चूक से ऐसा ( मिथ्या आहार विहार) हो भी जावे तो शीघ्रही उसका उपाय करना चाहिये और आगामी को उस का पूरा ख्याल रखना चाहिये ।
दूध
और रजोदर्शन के समय स्त्रियों को केवल रोटी, दाल, भात, पूड़ी, शाक आदि सादी और हलकी खुराक खानी चाहिये जिस से अजीर्ण उत्पन्न हो ऐसी और इतनी ( मात्रा से अधिक ) खुराक़ नहीं खानी चाहिये, अशक्ति ( कमज़ोरी ) न मालूम पड़े इस लिये कुछ पुष्ट खुराक भी खानी चाहिये, यथाशक्य गर्म कपड़ा पहरना चाहिये परन्तु तंग पोशाक नहीं पहरनी चाहिये, शीत काल में अत्यन्त शीत पड़ने के समय कपड़े घोने के आलस्य से अथवा उनके विगड़ जाने के भय से काफ़ी कपड़े न रखने से बहुत खरावी होती है, कभी २ ऐसा भी होता है कि- स्त्री ऋतुधर्म के समय बिलकुल खुले और दुर्गन्धवाले स्थान में बैठी रहती है इससे भी बहुत हानि होती है, एवं ऋतु धर्म के समय छत पर बैठने, शरीर पर ठंढी पवन लगने, नंगे पैद ठंढी ज़मीन पर चलने, भीगी हुई ज़मीन पर बैठने और भीगा कपड़ा पहरने आदि कई कारणों से भी शरीर में सर्दी लगकर ऋतु धर्म अटक ( रुक) जाता है और उसके अटक जाने से गर्भाशय में शोथ (सूजन) हो जानेका सम्भव होता है. क्योंकि सर्दी लगने से ऋतु धर्म का रक्त (खून) गर्म में जमकर शोथ को उत्पन्न कर देता है तथा पेंडू में दर्द को भी उत्पन्न कर देता