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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ द्वितीय संख्या बरढिया (वरदिया) गोत्र ॥ धारा नगरी में वहाँ के राजा भोज के परलोक हो जाने के बाद उक्त नगरी का राज्य जिस समय तँवरों को उन की बहादुरी के कारण प्राप्त हुआ उस समय भोजवशज (भोज की औलाद वाले ) लोग इस प्रकार थेयोग्य था) उसे भी सुन कर हमें अकथनीय आनन्द प्राप्त हुआ, तीसरे-त्रि के समय देवदर्शन करके श्रीमान् श्री फूलचन्द जी गोलच्छा के साथ "श्री फलोधी तीर्थोन्नति सभा" के उत्सव में गये, उस समय जो आनन्द हम को प्राप्त हुआ वह अद्यापि (अब भी) नहीं भूला जाता है, उस समय सभा में जयपुर निवासी श्री जनश्वेताम्यर कान्फ्रेंस के जनरल सेक्रेटरी श्री गुलाबचन्द जी उड्डा एम. ए. विद्योन्नति के विषय में अपना भाषणामृत वर्षा कर लोगों के हृदयाजो (हृदयकमलों) को विकसित कर रहे थे, हम ने पहिले पहिल उक्त महाशय का भाषण यहीं सुना था, दशमी के दिन प्रातःकाल हमारी उक्त महोदय (श्रीमान् श्री गुलाबचन्द जी बड़ा) से मुलाकात हुई और उन के साथ अनेक विषयों में बहुत देर तक वातालाप होता रहा, उन की गम्भीरता और सौजन्य को देख कर हमें अत्यन्त मानन्द प्राप्त हुमा, अन्त में उक्त महाशय ने हम से कहा कि-"आज रात्रि को जीर्णपुस्त्रकोद्धार आदि विषयों में भाषण होगे, अतः आप भी किसी विषय में अवश्य भाषण करें" मस्तु हम ने भी उफ महोदय के अनुरोध से जीर्णपुस्तकोद्धार विषय में भापण करना खीकार कर लिया, निदान रात्रि में करीव नौ धजे पर उक्त विषय में हम ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मेज के समीप खडे हो कर उक्त सभा में वर्तमान प्रचलित रीति आदि का उद्बोध कर भाषण किया, दूसरे दिन जब उक्त महोदय से हमारी बातचीत हुई उस समय उन्हों ने हम से कहा कि-"यदि आप कान्फ्रेंस की तरफ से राजपूताने में उपदेश करें तो उम्मेद है कि बहुत सी बातों का सुधार हो अर्थात् राजपूताने के लोग भी कुछ सचेत होकर कर्तव्य में तत्पर हो" इस के उत्तर में हम ने कहा कि-"ऐसे उत्तम कार्यों के करने में तो हम खय तत्पर रहते हैं अर्थात् यथाशक्य कुछ न कुछ उपदेश करते ही हैं, क्योंकि हम लोगों का कर्तव्य ही यही है परन्तु सभा की तरफ से अभी इस कार्य के करने में हमें लाचारी है, क्योंकि इस में कई एक कारण हैं-प्रथम तो हमारा शरीर कुछ अवस्थ रहता है, दूसरे-वर्तमान में भोसवालवशोत्पत्ति के इतिहास के लिखने में समस्त कालयापन होता है, इत्यादि कई कारणों से इस शुभ कार्य की अखीकृति की क्षमा ही प्रदान करावे" इत्यादि बातें होती रही, इसके पश्चात् हम एकादशी को बीकानेर चले गये, वहां पहुंचने के बाद थोड़े ही दिनों में अजमेर से श्री जैनम्वेताम्बर कान्फ्रेंस की तरफ से पुनः एक पत्र हमें प्राप्त हुआ, जिस की नकल ज्यों की त्यों निम्नलिखित है.॥श्री जैन (श्वेताम्बर) कोन्फरन्स
अजमेर
ता.१५ अक्टूवर""१९०६. ॥ गुरां जी महाराज श्री १०९८ श्री श्रीपालचंद्र जी की सेवा में धनराज कास्टिया-लि-बदना मालम होवे-आप को सुखसाता को पत्र नहीं सो दिरावें और फलोधी में आप को भाषण बडो मनोरजन हुधो राजपूताना मारवाड़ में आप जैसे गुणवान पुरुष विद्यमान है जिस्की हम को बड़ी खुशी है आप देशाटन करके जगह व जगह धर्म की बहुत उन्नति की अर्जी की तरफ भी आप जैसे महात्माओं को