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चतुर्थ अध्याय ।।
१५५ इसी लिये बहुत ऊपर को चढ़ने में श्वास आने लगता है, नाक तथा मुख से रुधिर निकलना शुरू हो जाता है और मरण भी हो जाता है, यद्यपि पक्षी पतली हवा में उड़ते है परन्तु वे भी अधिक ऊँचाई पर नहीं जा सकते हैं, फ्रेंचदेश के गेल्युसाक और वीयोट नामक प्रसिद्ध विद्वान् सन् १८०४ ईखी में करीब चार मील ऊँचे चढ़े थे, उस स्थान में इतना शीत था कि-शीसी के भीतर की स्याही उसी में ठंस कर जम गई तथा वहां की हवा मी इतनी पतली थी कि उन्हों ने वहां पर एक पक्षी को उड़ाया तो वह उड़ नहीं सका, किन्तु पत्थर की तरह नीचे गिर पड़ा, इसी प्रकार काफी हवा न होने के कारण मनुष्यों को भी पतली हवावाले ऊँचे प्रदेश में रहने से श्वास चलने लगता है और शरीर की नसें फूल कर फटने लगती है तथा नाक और मुंह से रक्त बहने लगता है, हिमालय
और आल्प्स पर्वतों पर चढनेवाले लोगों को यह अनुभव प्रायः हो चुका है और होता जाता है।
स्वच्छ-हवा के तत्वा .' सामान्य लोग मन में कदाचित् यह समझते होंगे कि-हवा एक ही पदार्थ की वनी हुई है परन्तु विद्वानों ने इस बात का अच्छे प्रकार से निश्चय कर लिया है कि-हवा में मुख्य चार पदार्थ हैं और वे बहुत ही चतुराई और आश्चर्य के साथ एकत्रित होकर मिले हुए है, वे चारों पदार्थ ये है-प्राणवायु (ऑक्सिजन ), शुद्धवायु (नाइट्रोजन), मिश्रित वायु (कारबानिक एसिड म्यास) और पानी के सूक्ष्म परमाणु, देखो! अपने आस पास में तीन प्रकार के पदार्थ सर्वदा स्थित होते है-अर्थात् कई तो पत्थर और काष्ठ के समान कठिन है, कई पानी और दूधके समान पतले अर्थात् प्रवाही है, वाकी कई एक हवा के समान ही वायुरूप में दीखते है जो कि (वायु) जल के सूक्ष्म परमाणुओं से बना हुआ है, हवा में मिश्रित जो एक प्राणवायु (ऑक्सिजन ) है वही मुख्यतया प्राणों का आधार रूप है, यदि यह प्राणवायु हवा में मिश्रित न होता तो दीपक भी कदापि जलता हुआ नहीं रह सकता, फिर यदि सब हवा प्राणवायु रूप ही होती तो भी जगत् में जीव किसी प्रकार से भी न तो जीते रह सकते और न चल फिर ही सकते किन्तु शीघ्र ही मर जाते, क्योंकि-जीवों को जितनी कठिन हवा की आवश्यकता है उस से अधिक वह हवा कठिन हो जाती, इसी लिये प्राणवायु के साथ दूसरी हवा कुदरती मिली हुई है
और वह हवा प्राण की आधारभूत नहीं है तथा उस हवामें जलता हुमा दीपक रखने से वुझ जाता है, इस लिये मिश्रित वायु ही से सब कार्य चलता है अर्थात् श्वास लेने में
१-यह चावलो के कोयलों के साथ प्राणवायु के मिलने से बनता है । २-इस को मिन्न करने से इस का माप भी हो सकता है।