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जैनसम्प्रदायशिक्षा ||
नहीं है
तो यह आप लोगों का भय और कथन व्यर्थ है, क्योंकि भर्तृहरि नी ने कहा है कि" सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति” अर्थात् सब गुण कश्चन ( सोने ) का आश्रय लेते हैं, इसी प्रकार नीतिशास्त्र में भी कहा गया है कि- " न हि तद्विद्यते किञ्चित्, यदर्थेन न सिध्यति " अर्थात् संसार में ऐसा कोई काम जो कि धन से सिद्ध न हो सकता हो, तात्पर्य यही है कि-धन से प्रत्येक पुरुष सब ही आप लोग कलों और कारखानों के काम को नहीं जानते हैं तो अनेक देशों के उत्तमोत्तम कारीगरों को बुला कर तथा उन्हें स्वाधीन रख कर आप कारखानों का काम अच्छे प्रकार से चला सकते हैं।
कुछ कर
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सकता है, देखो ! यदि
द्रव्य का व्यय करके
अब अन्त में पुनः एक बार आप लोगों से यही कहना है कि - हे प्रिय मित्रो ! अब शीघ्र ही तो, अज्ञान निद्रा को छोड़ कर खजाति के सद्गुणों की वृद्धि करो और देश के कल्याणरूप श्रेष्ठ व्यापार की उन्नति कर उमय लोक के सुख को प्राप्त करो |
यह पञ्चम अध्याय का ओसवाल वंशोत्पत्तिवर्णन नामक प्रथम प्रकरण समाप्त हुआ !!
द्वितीय प्रकरण - पोरवाल वंशोत्पत्तिवर्णन ||
पोरवाल वंशोत्पत्ति का इतिहास ॥
पद्मावती नगरी ( जो कि आबू के नीचे वसी थी ) में जैनाचार्य ने प्रतिबोध देकर लोगों को जैनधर्मी बना कर उन का पोरवाल वंश स्थापित किया थोत्य
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दो एक लेख हमारे देखने में ऐसे भी आये हैं जिन में पोरवाल ने से। को प्रतिवोध देने
वाला जैनाचार्य श्रीहरिभद्रसूरि जी महाराज को लिखा है, परन्त शुभ' यह बात बिलकुल
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राज्य में है
१–ये (पोरवाल ) जन दक्षिण मारवाड़ (गोडवाड़ ) और गुजरात में भ अधिक है, इन लोगों का ओसवालो के साथ विवाहादि सम्बन्ध नहीं पिता है, किन्तु केवल भोजनव्यवहारों १ होता है, इन का एक फिरका जॉघडानामक है, उस में २४ गोत्र है - था उस में जैनी और वैष्णव दोनों धर्मी वाले हैं, इन का रहना बहुत करके बम्बल नदी की छाया में रामपुरा, मन्दसौर, मालवा तथा हुल्कर सिंघ अर्थात् उक्त स्थानों में वैष्णव पोरवालों के करीव तीन हजार घर बसते हैं, इन के सिवाय बाकी के जैनधर्मधारी पोरवाल जॉघड़े हैं जो कि मेदपुर और उज्जैन आदि में निवास करते हैं, ऊपर कह चुके हैं कि-जॉघड़ा फिरके वाले पोरवालों के १४ गोत्र हैं, उन २४ गोत्रों के नाम ये है - १ - वाघरी । २- काला । ३ - घनघड | ४ - रतनावत । ९- कामस्या । १० – सेव्या । ११ – ऊधिया १६- मडावर्या । १७ - मुनियां । १८- घाट्या । १३- महता । २४ - खरया ॥
५- धन्यौत्य ।
६-मजावर्या । ७-ढवकरा । ८-भादल्या |
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१२ - वैखण्ड । १३ – भूत १९ -गलिया । २०- भेसौटा ।
। १४ - फरक्या । १५-लमेपर्या । २१ - नवेपर्या । १२ - दानगड |
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