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जैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ रहते थे, इसी से इन को सब लोग ढेलड़िया बोहरा कहने लगे थे, इन में सोनपाल नामक एक बोहरा बड़ा आदमी था, उस को देववश सर्प ने काट खाया था तथा एक जती ( यति ) ने उसे अच्छा किया था इसी लिये उस ने दयामूल जैन धर्म का ग्रहण किया था, उस के बहुत काल के पीछे उस ने शत्रुञ्जय की यात्रा करने के लिये अपने खर्च से संघ निकाला था तथा यात्रा में ही उस के पुत्र उत्पन्न हुमा था, संघ ने मिल कर उसे संधैवी ( संघपति) का पद दिया था अतः उस की औलावाले लोग सिंगी कहलाये, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि-संघवी का अपभ्रंस सिंगी हो गया है, इन (सिंगियों) के मी-महेवावत, गढावत, भीमराजोत और मूलचन्दोत आदि कई फिरके हैं ।।
ओसवाल जाति का गौरव ॥ प्रिय पाठकगण! इस जाति के विषय में आप से विशेष क्या कहें ! यह वही जाति है जो कि कुछ समय पूर्व अपने धर्म, विद्या, एकता और परस्पर प्रीतिभाव आदि सद्गुणों के बल से उन्नति के शिखर पर विराजमान थी, इस जाति का विशेष प्रशंसनीय गुण यह था कि जैसे यह धर्मकार्यों में कटिवद्ध थी वैसे ही सांसारिक धनोपार्जन आदि कामों में भी कटिवद्ध थी, तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार यह पारमार्थिक कामों में संलम थी उसी प्रकार लौकिक कार्यों में भी कुछ कम न थी अर्थात् अपने-'अहिंसा
-लड़िया" अर्थात् ढेलड़ी के निवासी ॥ २-गुजरात और कच्छ आदि देशों में संघवी गोत्र अन्य प्रकार से भी अनेकविध (कई तरह का) माना जाता है।
३-ये सिंगी (संघवी) जोधपुर भादि मारवाड़ वाले समझने चाहियें ॥
४-प्रीति के तीन भेद हैं-भक्ति, आदर और नेह, इन में से मकि उसे कहते हैं कि जो पुरुष अपनी अपेक्षा पद में श्रेष्ठ हो, सगुणों के द्वारा मान्य हो और विद्या तथा जाति में बड़ा हो, उस की सेवा करनी चाहिये तथा उस पर श्रद्धाभाष रखना चाहिये, क्योंकि वही भक्ति का पात्र है, सत्य पूछो तो यह गुण सब गुणों से उत्कृष्ट है, क्योंकि यही सब गुणों की प्राप्ति का मूल कारण है अर्थात् इस के होने से ही मनुष्य को सब गुण प्राप्त हो सकते हैं, इस की गति ऊर्ध्वगामिनी है, प्रीति का दूसरा भेद आदर है-आदर उसे कहते हैं कि-जो पुरुष अवस्था, द्रव्य, विद्या आरै जाति आदि गुणों में अपने समान हो उस के साथ योग्य प्रतिधापूर्वक वर्ताव करना चाहिये, इस (आदर) की गति समतलवाहिनी है तथा प्रीति का तीसरा भेद स्नेह है-नेह उसे कहते हैं कि जो पुरुष अवस्था, द्रव्य, विद्या और बुद्धि के सम्बंध में अपने से छोटा हो उस के हित को विचार कर उस की वृद्धि का उपाय करना चाहिये, इस (नेह) का प्रवाह जलस्रोत के समान अधोगामी है, बस प्रीति के ये ही तीनों प्रकार हैं, क्योंकि उक्त तीनों बातों के ज्ञान के बिना बालन में प्रीति नहीं हो सकती है-इस लिये इन तीनों भेदों के खरूप को जान कर यथायोग्य इन के वर्ताव का ध्यान रखना आवश्यक है।
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