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तृतीय अध्याय ॥ को कोई खच्छ वस्त्र पहना देना चाहिये क्योंकि शरीर को खुला रखने से तथा वस्त्र पहनाने में देर करने से कभी २ सर्दी लग कर खांसी आदि व्याधिके हो जाने का सम्भव होता है, बालक का शरीर नाजुक और कोमल होता है इस लिये दूसरे मास में पानी में दो मुठी नमक डाल कर उस को खान कराना चाहिये ऐसा करने से बालक का बल बढेगा, बालक को पवन वाले स्थान में खान नहीं कराना चाहिये किन्तु घर में जहां पवन न हो वहां खान कराना चाहिये. पुत्र के मस्तक के बाल प्रतिदिन और पुत्री के मस्तक के बाल सात आठ दिन में एक बार धोना चाहिये, बालक को खान कराते समय उलटा सुलटा नहीं रखना चाहिये, जब बालक की अवस्था तीन चार वर्ष की हो जावे तब तो ठेढे पानी से ही खान कराना लाभदायक है, जाड़े में, शरीर में व्याधि होने पर तथा ठंढा पानी अनुकूल न आने पर तो कुछ गर्म पानी से ही सान कराना ठीक है, यद्यपि शरीर गर्म पानी से अधिक खच्छ हो जाता है परन्तु गर्म पानी से सान कराने से शरीर में स्कुरणा और गर्मी शीघ्र नहीं आती है तथा गर्म पानी से शरीर भी ढीला हो जाता है, किन्तु ढंढे पानी से तो सान कराने से शरीर में शीघ्र ही स्फुरणा और गर्मी आ जाती है;
शक्ति बढती है और शरीर हढ़ (मजबूत) भी होता है, बालक को बालपन में खान कराने का अभ्यास रखने से बड़े होने पर भी उस की वही आदत पड़ जाती है और उस से शरीरस्थ अनेक प्रकार के रोग निवृत्त हो जाते हैं तथा शरीर अरोग होकर मजबूत हो जाता है। ३-वा-बालक को तीनों ऋतुओं के अनुसार यथोचित वस्त्र पहनाना चाहिये, शीत
और वर्षा ऋतु में फलालेन और ऊन आदि के कपड़ों का पहनाना लाम कारक है तथा गर्मी में सूतके कपड़े पहनाने चाहियें, यदि बालक को ऋतुके अनुसार कपड़े न पहनाये जावें तो उस की तन दुरुस्ती बिगड़ जाती है, बालकको तंग कपड़े पहनाने से शरीर में रुषिर की गति रुक जाती है और रुधिर की गति रुकने से शरीर में रोग होजाता है तथा तंग कपड़े पहनाने से शरीर के अवयवों का बढ़नामी रुक जाता है इसलिये बालक को ढीले कपड़े पहनाने चाहियें, कपड़े पहनाने में इस वातकामी खयाल रखना चाहिये कि बालकके सब अंग ढके रहें और किसी अङ्ग में सर्दी वा गर्मी का प्रवेश न हो सके, यदि कपड़े अच्छे और पूरे (काफी) न हों अथवा फटे . १-पुत्र के मस्तक के बाल प्रतिदिन और पुत्री के मस्तक के बाल सात आठ दिन में धोने का वात्पर्य है कि बाल्यावस्था से जैसी वालक की आदत डाली जाती है वही वडे होते पर भी रहती है, अतः यदि पुत्री के बाल प्रतिदिन धोये जावे तो बडे होने पर भी उस की वही आदत रहे सो यह (प्रतिदिन वालो का घोना) त्रियों की निम नहीं सकती है क्योकि धोने के पश्चात् वालों का गूथना आदि भी अनेक झगड़े स्त्रियों को करने पड़ते हैं और प्रतिदिन यह काम करें तो आधा दिन इसी में बीत जाय-किन्तु पुत्र का तो बड़े होनेपर भी यह कार्य प्रतिदिन निभ सकता है।
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