________________
चतुर्थ अध्याय ॥
४३३ सी दीख पड़े अथवा तेजावी सोडा वा तेज़ाबी पोटास दीख पड़े तो जान लेना
चाहिये कि मूत्र में खार और खटास (आलकली खार और एसिड ) है। यह संक्षेप से सूक्ष्मदर्शक यन्त्र के द्वारा मूत्रपरीक्षा कही गई है, इस के विषय में यदि विशेष हाल जानना हो तो डाक्टरी ग्रन्थों से वा डाक्टरों से पूँछ कर जान सकते है।।
मलपरीक्षा-मल से भी रोग की बहुत कुछ परीक्षा हो सकती है तथा रोग के साध्य वा असाध्य की भी परीक्षा हो सकती है, इस का वर्णन इस प्रकार है:१-वायुदोषवाले का मल-फेनवाला, सूखा तथा धुएँके रंग के समान होता है और
उस में चौथा भाग पानी के सदृश होता है। २-पित्तदोपवाले का मल-हरा, पीला, गन्धवाला, ढीला तथा गर्म होता है। ३-कफदोषवाले का मल-सफेद, कुछ सूखा, कुछ भीगा तथा चिकना होता है । ४-वातपित्तदोषवाले का मल-पीला और काला, भीगा तथा अन्दर गांठोंवाला
होता है। ५-वातकफदोषवाले का मल-भीगा, काला तथा पपोटेवाला होता है। ६-पित्तकफदोषवाले का मल-पीला तथा सफेद होता है। ७-त्रिदोषवाले का मल-सफेद, काला, पीला, ढीला तथा गांठोंवाला होता है। ८-अजीर्णरोगवाले का मल-दुर्गन्धयुक्त और ढीला होता है । ९-जलोदररोगवाले का मल-बहुत दुर्गन्धयुक्त और सफेद होता है। १०-मृत्युसमय को प्राप्त हुए रोगी का मल-बहुत दुर्गन्धयुक्त, लाल, कुछ सफेद,
मांस के समान तथा काला होता है। यह भी स्मरण रखना चाहिये कि जिस रोगी का मल पानी में डूब जावे वह रोगी बचता नहीं है। - इस के अतिरिक्त मलपरीक्षा के विषय में निम्नलिखित बातों का भी जानना अत्यावश्यक है जिन का वर्णन संक्षेप से किया जाता है:
१-इस शब्द का प्रयोग बहुवचन मे होता है अर्थात् अलकलिस वा अलकलीज, इस को फ्रेंच भाषा में अल्कली भी कहते है, यह एक प्रकार का खार पदार्थ है, इस शब्द के कोपकारों ने कई अर्थ लिखे हैं, जैसे-पौधे की राख, कढाई में भूनना, वा भूनना, सोडे की राख, तेजाबी सोडा तथा तेजावी पोटास इत्यादि, इस का रासायनिक खरुप यह है कि यह वेजाची असली चीजों में से है, जैसे-सोडा, पोटास, गोंदविशेप
और सोडे की किस्म का एक तेज तेजाब, इस का मुख्य गुण यह है कि यह पानी और अलकोहल (विष) में मिल जाता है तथा तेल और चर्वी से मिल कर सावुन को बनाता है और तेजाब से मिलकर नमक को वनाता है या उसे मातदिल कर देता है, एवं बहुत से पौधो की ज़दी (पीलेपन) को भूरे रंग की कर देता है और काई वा पौधे के लाल रंग को नीला कर देता है।