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चतुर्थ अध्याय ॥
१५७ है, क्योंकि दो घड़ी दिन चढ़ने के बाद वह सूर्य की किरणों की उष्मा के द्वारा सूख जाती है, वे ही कण सूक्ष्म परमाणुओंके स्थूल पुद्गल बँधकर अर्थात् बादल बन कर अथवा धुंअर होकर बरसते हैं, यदि हवा में पानी के परमाणु न होते तो सूर्य के तापकी गर्मी से प्राणियों के शरीर और वृक्ष वनस्पति आदि सब पदार्थ जल जाते और मनुष्य मर जाते, केवल यही कारण है कि जहां जलकी नदी दरियाव और वनस्पति बहुत हैं वहां " वृष्टि भी प्रायः अधिक होती है तथा रेतीके देश में कम होती है ।
यद्यपि यह दूसरी बात है कि प्राणियों के पुण्य वा पाप की न्यूनाधिकता से कर्म आदि पांच समवायों के संयोगसे कमी २ रेतीली जमीन में भी बहुत वृष्टि होती है और जल तथा वृक्ष वनस्पति आदि से परिपूर्ण स्थान में कम होती वा नहीं भी होती है, परन्तु यह केवल स्याद्वाद मात्र है, किन्तु इस का नियम तो वही है जैसा कि ऊपर लिख चुके
है, यद्यपि हवा का वर्णन बहुत कुछ विस्तृत है-परन्तु ग्रन्थविस्तार भयसे उस सब का ' लिखना अनावश्यक समझते है, इस के विषय में केवल इतना जान लेना चाहिये कि-योग्य । परिमाण में ये चारों ही पदार्थ हवामें मिले हो तो उस हवा को खच्छ समझना चाहिये ' और उसी खच्छ हवासे आरोग्यता रह सकती है ॥
हवाको विगाड़नेवाले कारण ॥ स्वच्छ हवा किस रीति से विगड़ जाती है-इस बात का जानना बहुत ही आवश्यक है, यह सब ही जानते हैं कि-प्राणों की स्थिति के लिये हवा की अत्यन्त आवश्यकता है परन्तु ध्यान रखना चाहिये कि-प्राणों की स्थिति के लिये केवल हवा की ही आवश्यकता नहीं है किन्तु खच्छ हवाकी आवश्यकता है, क्योंकि-बिगड़ी हुई हवा विष से भी अधिक हानिकारक होती है, देखो ! संसार में जितने विष हैं उन सब से भी अधिक हानिकारक बिगड़ी हुई हवा है, क्योंकि इस (बिगड़ी हुई) हवा से सहस्रों लक्षों मनुष्य एकदम मर जाते है, देखो ! कुछ वर्ष हुए तब कलकत्ते के कारागृह की एक छोटी कोठरी में एक रात के लिये १४६ आदमियों को बंद किया गया था उस कोठरी में सिर्फ दो छोटी २ खिड़की थी, जब सवेरा हुआ और कोठरी का दर्वाजा खोला गया तो सिर्फ २३ मनुष्य जीते निकले, बाकी के सब मरे हुए थे, उन को किसने मारा ? केवल खराब हवाने ही उन को मारा, क्योंकि हवा के कम आवागमन वाली वह छोटी सी कोठरी थी, उस में बहुत से मनुष्यों को भरदिया गया था, इस लिये उन के श्वास लेने के द्वारा उस कोठरी की
१-इस पर यदि कोई मनुष्य यह शका करे कि-सिर्फ २३ मनुष्य भी क्यो जीते निकले, तो इस का उत्तर यह है कि-१४६ आदमियों के होने से श्वास लेनेके द्वारा उस कोठरीकी हवा विगड़ गई थी, जब उन में से १२३ मर गये, सिर्फ २३ आदमी बाकी रह गये, तब-२३ के वाखे वह स्थान श्वास लेने के लिये काफी रह गया, इसलिये वे २३ आदमी बच गये ॥