________________
७२१
पश्चम अध्याय ॥ पर से श्रद्धा को नहीं हटाना चाहिये, क्योंकि-ज्योतिःशास्त्र (निमित्तज्ञान ) कमी मिथ्या नहीं हो सकता है, देखो! ऊपर जिनं प्रसिद्ध महोदयों की जन्मकुण्डलियाँ यहाँ उद्धत (दर्ज) की हैं उन के लमसमय में फर्क का होना कदापि सम्भव नहीं है, क्योंकि इस विद्या के पूर्ण ज्ञाता विद्वानों से इष्टकाल का संशोधन करा के उक्त कुण्डलियाँ बनावाई गई प्रतीत होती है और यह बात कुण्डलियों के ग्रहों वा उन के फल से ही विदित होती है, देखो! इन कुण्डलियों में जो उच्च ग्रह तथा राज्ययोग आदि पड़े हैं उन का फल सब के प्रत्यक्ष ही है, बस यह बात ज्योतिष शास्त्र की सत्यता को स्पष्ट ही बतला रही है। __जन्मपत्रिका के फलादेश के देखने की इच्छा रखने वाले जनों को भद्रबाहुसंहिता, जन्माम्भोधि, त्रैलोक्यप्रकाश तथा भुवनप्रदीप आदि ग्रन्थ एवं वृहज्जातक, भावकुतूहल तथा लघुपाराशरी आदि ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों को देखना चाहिये, क्योंकि उक्त अन्थों में सर्वे योगों तथा ग्रहों के फल का वर्णन बहुत उत्तम रीति से किया गया है।
यहाँ पर विस्तार के भय से ग्रहों के फलादेश आदि का वर्णन नहीं किया जाता है किन्तु गृहस्थों के लिये लामदायक इस विद्या का जो अत्यावश्यक विषय था उस का संक्षेप से कथन कर दिया गया है, आशा है कि-गृहस्थ जन उस का अभ्यास कर उस से अवश्य लाभ उठावेंगे । यह पञ्चम अध्याय का ज्योतिर्विषय वर्णन नामक नवा प्रकरण समाप्त हुआ।
दशवाँ प्रकरण-खरोदयवर्णन ॥
खरोदय विद्या का ज्ञान ॥ विचार कर देखने से विदित होता है कि-खरोदय की विद्या एक बड़ी ही पवित्र तथा आत्मा का कल्याण करने वाली विद्या है, क्योंकि-इसी के अभ्यास से पूर्वकालीन महानुभाव अपने आत्मा का कल्याण कर अविनाशी पद को प्राप्त हो चुके है, देखो! श्री जिनेन्द्र देव और श्री गणधर महाराज इस विद्या के पूर्ण ज्ञाता ( जानने वाले) थे अर्थात् वे इस विद्या के प्राणायाम आदि सब अङ्गों और उपाङ्गों को भले प्रकार से जानते थे, देखिये! जैनागम में लिखा है कि-"श्री महावीर अरिहन्त के पश्चात् चौदह पूर्व के पाठी श्री भद्रबाहु खामी जब हुए थे तथा उन्हों ने सूक्ष्म प्राणायाम के ध्यान का परावर्त्तन किया था उस समय समस्त सई ने मिल कर उन को विज्ञप्ति की थी" इत्यादि । १-भद्रवाहुसहिता आदि प्रन्य जैनाचार्यों के बनाये हुए है। २-बृहज्जातक भादि प्रन्थ अन्य (जैनाचार्यों से भिन्न ) आचार्यों के बनाये हुए है ॥
१