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ही शुद्ध हो जाता है। इसलिए फिर निरंतर 'मैं शुद्धात्मा हूँ' वह लक्ष्य रहा करता है।
जहाँ अहंकार चला जाए, वहाँ निराकुलता होती है।
'मैं चंदूलाल हूँ' वह मान्यता प्रकृति को आधार देती है । 'मैं शुद्धात्मा हूँ' का ज्ञान हुआ कि वह आधार खिसक गया । अर्थात् निराधार होते ही वह वस्तु गिर पड़ी । अहंकार हट गया अर्थात् अकर्त्ता हुआ ।
महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी के पास किस तरह जा सकते हैं? पूज्य दादाश्री की पाँच आज्ञा पालेंगे, उससे।
आत्मा और पुद्गल में क्या फर्क है? आत्मा एक ही वस्तु है हमारे पास, और पुद्गल परमाणु अनंत हैं । पुद्गल विभाविक वस्तु है और आत्मा स्वाभाविक है। पुद्गल पूरण- गलन होता रहता है !
कुछ करना नहीं है, मात्र ज्ञानी के कृपापात्र बनना है। कृपापात्र बनने में बाधक क्या है? आपकी आड़ाइयाँ !
द्रव्य नहीं पलटता। भाव पलटें, तब छूटा जा सकता है। बंद करने से चोरी बंद नहीं होती, परन्तु चोरी करने का भाव पलट जाए तो चोरी बंद हो जाती है ! प्रतिक्रमण करने से भाव पलट जाते हैं और कर्म शुद्ध होकर पूरा हो जाता है !
जगत् अहंकार निकालने में फँसा हुआ है। दादाश्री कहते हैं, “इगोलेस बनने की ज़रूरत नहीं है, मात्र 'हम कौन है' जानने की ही ज़रूरत है। अपना जो स्वरूप है उसमें इगोइज़म है ही नहीं।" आप चंदूभाई नहीं हो, फिर भी मानते हो कि 'मैं चंदूभाई हूँ', वही अहंकार है ।
अंदर कषाय होते हैं, चिढ़ होती है, गुस्सा आता है, उसका कारण क्या है? अज्ञानता। अज्ञानता के कारण, अहंकार के कारण, अंदर राग- द्वेष होते ही रहते हैं! इसलिए संसार का रूटकॉज़ अज्ञानता है !
धनवान कौन है? जो मन से राजा हो, वह ! पैसे हों तब भी खर्च
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