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आप्तवाणी-५
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हो या नहीं भी हो। पैसे देते समय मन में ऐसा होता है कि 'ये नगीनभाई नहीं होते तो मैं देता ही नहीं।' यानी उल्टा आप दान देकर जानवर में जाओगे - यह रौद्रध्यान बाँधा इसलिए।
प्रश्नकर्ता : ध्यान किस पर आधारित है? ।
दादाश्री : ध्यान तो आपके डेवलपमेन्ट पर आधारित है। आपको जिस ज्ञान का डेवलपमेन्ट हुआ है, उस पर आधारित है।
आप खराब करोगे परन्तु अंदर ध्यान ऊँचा होगा तो आपको पुण्य बँधेगा। शिकारी हिरण को मारे, परन्तु अंदर खूब पछतावा करे कि 'यह मेरे हिस्से में कहाँ आया? इन बीवी-बच्चों के लिए मुझे यह मजबूरन करना पड़ रहा है!' तो वह ध्यान ऊँचा गया, ऐसा कहा जाएगा। नेचर (कुदरत) क्रिया नहीं देखती। उस समय का आपका ध्यान देखती है। इच्छा भी नहीं देखती।
किसी व्यक्ति ने आपको लूट लिया, तो उस समय आपके मन के सभी भाव रौद्र हो जाते हैं। अंधेरे में ऐसे भाव हो जाते हैं और शुद्ध प्रकाश हो वहाँ कैसे भाव होंगे? 'व्यवस्थित' कहकर भावाभाव हुए बगैर आगे चलने लगेंगे!
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रश्नकर्ता : धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - जीवन के ये चार पद जरा समझाइए।
दादाश्री : अर्थ यानी अपने यहाँ लोग जिसे सांसारिक स्वार्थ कहते हैं वह। वहाँ से लेकर परमार्थ तक का अर्थ वह अर्थ है। ठेठ परमात्मा तक अर्थ रहता है।
परमार्थ का अर्थ क्या है? आत्मा संबंधी ही जहाँ पर स्वार्थ है, दूसरा कोई स्वार्थ है ही नहीं, आत्मा के अलावा संसार संबंधी कोई स्वार्थ ही नहीं है, वह परमार्थ कहलाता है। और आत्मा संबंधी स्वार्थी तो 'ज्ञानी पुरुष' होते हैं।