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आप्तवाणी-५
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प्रश्नकर्ता : उसे सत्यगु कहा जाएगा?
दादाश्री : लोगों को उसे जो युग कहना है वह कहें, परन्तु परिवर्तन होगा। सतयुग तो गया, वह फिर से आएगा नहीं, इसलिए कलियुग में जो नहीं देखा हो वैसे सुंदर-सुंदर विचार दिखेंगे!
आज मनुष्यों की बुद्धि जो 'डेवलप' हो रही है, वैसी दस लाख वर्षों में कभी भी किसी समय हुई नहीं थी। यह बुद्धि विपरीत हो रही है, परन्तु विपरीत बुद्धि भी 'डेवपलप्ड' (विकसित) है, उसे सम्यक् होने में देर नहीं लगेगी। परन्तु पहले तो बुद्धि कुछ खास 'डेवलप' नहीं थी।
प्रश्नकर्ता : इसलिए ही तो पहले के काल में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के लिए बहुत लम्बी-लम्बी तपश्चर्या करनी पड़ती थी। उसका कारण यही है न?
दादाश्री : यही था। अभी बहुत तपश्चर्या नहीं करनी पड़ती, सब तपे हुए ही है! एक दियासलाई जलाए उसके पहले तो धमाका हो जाता है। तपे हुए को क्या तपाना? निरंतर तप ही करते रहते हैं बेचारे।
अध्यात्म में इन्वेन्शन शुद्ध हृदयवाले के पास पूछने का बहुत नहीं होता और वह धर्म की प्राप्ति भी बहुत नहीं करता।
प्रश्नकर्ता : यानी टेढ़े लोगों को लाभ है क्या?
दादाश्री : टेढ़े को ही लाभ है। इनके जैसे हृदयशुद्धिवाले मैंने बहुत सारे देखे हैं। उन्हें मैं कहता हूँ कि आप तो सुखी ही है, तो फिर आपको क्या है? आप सीधे लोग दुनिया का नुकसान नहीं करते, परन्तु आत्मदशा तक पहुँचने में बहुत समय लगेगा, क्योंकि उनका 'इन्वेन्शन' (खोज) बंद रहता है। उनका इंजन धीरे-धीरे चलता रहता है।
___ यह जो मैं कह रहा हूँ, वैसी बात किसीने की ही नहीं होगी। हर कोई ऐसा कहता है कि ये हृदयशुद्धिवाले ही धर्म को प्राप्त करते हैं, और