________________
आप्तवाणी-५
१५१
लेते रहो और छूटने की तैयारियाँ करो।' हिन्दुस्तान में आर्यप्रजा के रूप में जन्म हुआ, इसलिए छूटने के लायक हुआ ।
एक व्यक्ति से मैंने पूछा कि तेरा मुहल्ला तो बहुत साहूकारों का है, तो चोरियाँ नहीं होती होंगी ! तब उसने कहा कि देखो, यह सामनेवाली पुलिसचौकी हटाकर देखो। फिर हमारे अड़ोसी - पड़ोसी, शौचालय में लोटा है, वह भी नहीं रहने देंगे! यानी कि तूने कहा उसके जैसा है, डर के मारे ! कोई डर नहीं हो तो हर्ज नहीं न?
प्रश्नकर्ता : तो हर्ज नहीं होगा ।
दादाश्री : तू चुराकर लाएगा, तुझे पसंद हों वे चीज़ें? प्रश्नकर्ता : पसंद की चीज़ें तो ले आऊँ। दादाश्री : सोने की सिल्ली पड़ी हो तो लाएगा क्या?
प्रश्नकर्ता : वैसा कुछ हो तो सभी का मन ललचा जाएगा।
दादाश्री : इन लोगों के मन ऐसे स्थिर नहीं हैं। ये तो भय के मारे सीधे रहें, ऐसे हैं । इन कविराज ने एक दिन मुझसे क्या कहा कि इन नालायकों के लिए सरकार को सेना और पुलिसवाले रखने पड़ते हैं और उसके लिए टैक्स, वे लायकों के पास से लेते हैं! ऐसे बहुत से लोग होते होंगे कि जिनके लिए पुलिसवालों की ज़रूरत नहीं होती है।
टकराव से अटकण
मजिस्ट्रेट साहब घर पर पत्नी के साथ दो-दो महीनों से नहीं बोलते और वहाँ कोर्ट में सात वर्ष की सजा ठोक देते हैं ! अरे, घर में मुँह चढ़ाकर क्यों फिरते हों? निकाल कर दो न ।
मुझे किसीके साथ थोड़ा-सा भी मतभेद नहीं हुआ है । किसलिए ऐसा होगा?
प्रश्नकर्ता : मतभेद हो वैसा बोलें- चालें और बरतें नहीं, तो मतभेद नहीं पड़ेंगे।