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आप्तवाणी-५
इफेक्टिव हैं। परन्तु 'ज्ञान' हो तो इफेक्ट नहीं होता। इसलिए हमने कहा है कि मन इफेक्टिव है, वाणी इफेक्टिव है और देह भी इफेक्टिव है।
द्रव्यमन स्थूल मन है और भावमन सूक्ष्म मन है। भावमन बदले तब छूटेंगे। स्थूल मन शायद नहीं भी बदले तो हर्ज नहीं है। भाव के अनुसार दंड दिया जाता है। द्रव्य में हिंसा का विचार होता है, परन्तु भाव में अलग होता है, इसलिए भाव के अनुसार दंड दिया जाता है। द्रव्य के दोष का दंड यहीं पर मिल जाता है, और भाव के दोष का दंड परलोक में मिलता है।
अभी जगत् में जो धर्म चल रहे हैं, उनकी थिअरी क्या है? कि भाव नहीं बदलते परन्तु द्रव्य बदलने जाते हैं। लोगों को क्या होता है कि द्रव्य के अनुसार ही भाव बदलते रहते हैं। गलत करे तब भी गलत करने के बाद भाव पक्का करते हैं कि ऐसा तो करना ही चाहिए। इसलिए अपनी क्या खोज है कि द्रव्यमन को यदि लोग बदलने जाएँ तो वह तो कभी भी बदलेगा ही नहीं। इसलिए हमने स्थूल मन को एक ओर रख दिया, स्थूल क्रियाओं को एक ओर रख दिया। देह की तमाम क्रियाओं को एक
ओर रख दिया। हम स्वरूप का 'ज्ञान' देते हैं, फिर सारा परिवर्तन होता है, वर्ना द्रव्यमन के धक्के से ही मनुष्य चलता रहता है।
भावमन का किसीको भी पता नहीं चलता। भावमन है ऐसा पता चलता है, परन्तु वह किस तरह से काम करता है उसका पता नहीं चलता।
प्रश्नकर्ता : वह 'अनकोन्शियस' हुआ न?
दादाश्री : हाँ, वह अहंकार की ओट में, अंधेरे में सब काम कर डालता है। अहंकार का अंधेरा नहीं हो तो दिखेगा। यह बहुत सूक्ष्म वस्तु
बुद्धिमार्ग-अबुधमार्ग यदि संसारमार्ग में डेवलप होना हो तो बुद्धिमार्ग में जाओ और मोक्षमार्ग में जाना हो तो अबुधमार्ग में जाओ। हम अबुध हैं। हममें ज़रा भी बुद्धि नहीं है। बुद्धि सेन्सिटिव रखती है। बुद्धि के दो प्रकार हैं: एक