Book Title: Aptavani Shreni 05
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 191
________________ १६० आप्तवाणी-५ बैठे थे, वे ही लोग अभी यहाँ पर कपड़ा खींचकर नापते रहते हैं और इसलिए इन लोगों की मोक्ष में जाने की बारी नहीं आती। ये तो चटनी के लिए बैठे हुए हैं। कहीं पूरे थाल के लिए ये लोग नहीं बैठे हुए हैं। प्रश्नकर्ता : सत्य, अहिंसा, प्रामाणिकता, ये सब जो दिव्य गुण हैं, उनमें से एकाध गुण की उपासना करें तो ऐसा है कि बाकी के ओटोमेटिक आ जाएँगे? दादाश्री : एक पकड़ ले तो सब आ जाएँगे। एक को पकड़कर बैठ जाए तो सारे ही आ जाएँगे! छूटने का कामी प्रश्नकर्ता : श्रद्धा से मनुष्य जीवन में टिक सकता है? वह किस प्रकार? दादाश्री : हम एक स्टीमर में बैठे, फिर किसीके मन में ऐसा वहम आया कि यह स्टीमर डूब जाए ऐसा है, तो हम उतर जाते हैं और श्रद्धा बैठे तो? तो फिर बैठे रहोगे या नहीं बैठे रहोगे? क्या लगता है आपको? श्रद्धा नहीं बैठे तो तुरन्त ही उठ जाएगा। प्रश्नकर्ता : कईबार हम श्रद्धा रखकर काम करते हैं, परन्तु उसमें हमें मुश्किल ही आती है। दादाश्री : वह श्रद्धा नहीं है, वह विश्वास है। विश्वास में मुश्किलें आती है, श्रद्धा में नहीं आतीं। प्रश्नकर्ता : मेरे साथ ऐसा हुआ है। दादाश्री : श्रद्धा और विश्वास दो अलग चीजें हैं। श्रद्धा बिलीफ़ के अधीन है। विश्वास आए, वहाँ पर उसका विश्वासघात भी हो सकता है! यह पूरा जगत् ही बिलीफ़ के आधार पर चल रहा है। परन्तु इस जगत् में दुःख क्यों है? क्योंकि उसे रोंग बिलीफें मिली हैं और यदि राइट बिलीफ़ होती तो इस जगत् में दुःख होते ही नहीं! जीव मात्र बिलीफ़,

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