Book Title: Aptavani Shreni 05
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 193
________________ १६२ आप्तवाणी-५ हेल्प करते रहते हैं। भगवान का तो हेल्प करने का ही काम है न! प्रश्नकर्ता : हेल्प करें उसमें भगवान का पक्षपात है क्या? मदद करने जितना पक्षपात है? दादाश्री : भगवान खुद मदद नहीं करते, यह कुदरती रचना है सारी - स्वतंत्र : साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स है। क्योंकि जीव मात्र स्वतंत्र है। स्वतंत्र अर्थात् कुदरत उसकी मदद में होती ही है। खुद कहेगा कि मुझे चोरी करनी है तो चंद्र, तारे, सबकुछ हाज़िर होते हैं। भगवान तो उसमें सिर्फ 'लाइट' देने का काम ही करते हैं। उसमें मूल चोरी करने का भाव खुद का है। कुदरत उसे उसका पुण्य जहाँ खर्च करवाना हो वहाँ पर हेल्प करती है, यानी कि उसे उसके सारे संयोग मिलवा देती है। भगवान इसमें सिर्फ लाइट ही देते रहते हैं। भक्ति, योग और ध्यान प्रश्नकर्ता : गीता में कहा है कि पृथ्वी पर पाप का भार बढ़ जाता है तब उसका नाश करने के लिए 'मैं' जन्म लेता हूँ, वह 'मैं' कौन है? दादाश्री : उसे ही आत्मा कहते हैं, मैं अर्थात् कृष्ण नहीं। 'मैं' का अर्थ ही आत्मा। नियम ऐसा है कि जब-जब पृथ्वी पर पाप का भार बढ़ता है, तब किसी महान पुरुष का जन्म हो ही जाता है। अर्थात् प्रत्येक युग में महान पुरुषों का जन्म होता है। प्रश्नकर्ता : ऐसा कहते हैं कि श्री कृष्ण भगवान ने रासलीला की थी, उसका क्या कारण है? दादाश्री : भगवान रासलीला खेले ही नहीं। आपको किसने कहा कि भगवान रासलीला खेले थे? वे तो सारी बाते हैं। कृष्ण तो महान योगेश्वर थे। लोगों ने रासलीला में लाकर उनका दुरुपयोग किया। कृष्ण का दो प्रकार से आराधन किया जाता है। बालमंदिर के मनुष्य हैं, उन्हें बालकृष्ण के दर्शन करने चाहिए और वैकुंठ में जाना हो, उन्हें

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