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आप्तवाणी-५
उपयोग करके देखना । यदि आपको ज़रा भी असर हो तो कहना।
प्रश्नकर्ता : कुछ रास्ता निकालने के लिए ही तो यह प्रश्न पूछ रहा हूँ।
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दादाश्री : आप मुझसे पूछिए। मैं कहूँ उस अनुसार करना। रास्ता तो यही है। और सिर पर तो ऐसा लेना ही नहीं है कि मुझे दुःख रहा है। कोई कहेगा कि 'क्यों, आपको क्या हो रहा है?' तब कहना कि 'पड़ोसी का सिर दु:ख रहा है, उसे मैं जानता हूँ।' और 'यह' पड़ोसी है, ऐसा 'आपको' विश्वास हो गया है न?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : तो फिर दु:ख किसलिए ? पड़ोसी रो रहा हो तो हम भी क्या रोने लगें? पड़ोसी के यहाँ तो लड़ाइयाँ होती ही रहेंगी और पत्नी के साथ किसकी लड़ाई नहीं होती? 'हम' अविवाहित हैं, 'हम' किसलिए रोएँ? जो विवाहित है, वह रोए । 'हम' ने विवाह नहीं किया है ! विधुर भी नहीं हुए! ‘हम' किसलिए रोएँ? हमें तो पड़ोसी को चुप करवाना चाहिए कि, 'भाई, रोना नहीं, हम हैं आपके साथ । डोन्ट वरी, घबराना नहीं । ' ऐसा
कहना ।
प्रकृति का सताना
यह ‘वणिक-माल', वह परेशानी आने से पहले ही घबरा जाता है । हमें तो चंदूभाई से कहना है कि, 'आपको कुछ भी नहीं होगा ।' भीतर ऐसा विचार आएगा कि 'उस व्यक्ति से चला नहीं जा रहा, और मुझे भी ऐसा हो जाएगा तो?' ऐसे विचार आएँ तो आप कहना, ‘चंदूभाई, हम बैठे हैं न! कुछ भी नहीं होगा ।' 'आप' जुदापना के व्यवहार से बोलो न । यह तो साइन्स है। 'मुझे हुआ' कहा कि भूत पकड़ लेगा । इसलिए जगत् को सारे भूतों ने पकड़ा हुआ है !
खुद परमात्मा है फिर किसलिए यह सब है? परमात्मापन की शक्ति थोड़ी-बहुत आपको दिखी है या नहीं? आपको ऐसा भान है कि आप