________________
श्रद्धा की तुलना में दर्शन उच्च कहलाता है। श्रद्धा बदल जाती है और दर्शन कभी बदलता नहीं! और भीतर सूझ पड़े वह कुदरती देन है। अनेक जन्मों के अनुभव के सार के रूप में सूझ मिलती है!
दो लोग बातें करें, वह आख्यान और समूह में बोले वह व्याख्यान !
अनुकूलता में सावधान रहो। अनुकूलता फिसलाती है और प्रतिकूलता जागृत रखती है।
जिस भाव से बंध पड़ता है उसी भाव से निर्जरा (आत्मप्रदेश में से कर्मों का अलग होना) होती है ! क्रूर भाव का बंध पड़े तो निर्जरा होते समय क्रूर दिखता है!
शास्त्रज्ञान से निबेड़ा नहीं है, अनुभवज्ञान से निबेड़ा है। और अनुभवज्ञान अनुभवी ज्ञानी के पास से ही मिलता है। शास्त्र हमारी भूल नहीं दिखाते। वे सामान्यभाव से सभी को कह जाते हैं। प्रत्यक्ष के बिना उपाय नहीं है। कागज़ पर बनाया हुआ दीया अंधेरे में प्रकाश देगा? शास्त्रों की सीमा कागज़ पर बनाए हुए दीये जितनी ही है। सच्चा प्रकाश प्रकट दीया, ज्ञानी ही दे सकते हैं! ___जहाँ कषाय हैं, वहाँ परिग्रह है, और अकषाय से मोक्ष! अक्रमज्ञान मिलने के बाद कषाय नहीं होते, क्योंकि यहाँ कर्म बंधते ही नहीं। आत्मज्ञान हो जाए, वहाँ कषाय जाएँ!
सत्संग किसलिए करना है? इतना ही समझने के लिए कि कुछ भी करना मत। जो परिणाम हों, उन्हें देखते रहो!
नियतिवाद अर्थात् इस संसार के जीवों का जो प्रवाह चल रहा है, वह नियति के नियम का अनुसरण करके चल रहा है, परन्तु उसमें सिर्फ नियति से ही पूरा नहीं हो जाता। दूसरे कारण जैसे कि काल, स्वभाव, पुरुषार्थ, प्रारब्ध, सभीकुछ आता है। ___आत्मज्ञान मिले तब चित्त शुद्ध हो जाता है। शुद्ध चित्त ही शुद्ध चिद्रूप और वही शुद्धात्मा कहलाता है। पूज्य दादाश्री ज्ञान देते हैं तब चित्त पूरा