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आप्तवाणी-५
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दादाश्री : स्वच्छंदी ही होते हैं न। गुरु के गुरु स्वच्छंदी, इसलिए स्वच्छंदी का ही तूफ़ान। गृहस्थी भी स्वच्छंदी और त्यागी भी स्वच्छंदी। स्वच्छंदी मनुष्य को कैफ़ चढ़ता है। 'स्वच्छंद किसे कहा जाता है' उतना समझे तो भी बहुत हो गया।
हमारी आज्ञा में रहे, वह स्वच्छंद से बाहर निकल गया, फिर संसार में आपका चाहे जो भी स्वच्छंद हो, परन्तु वह स्वच्छंद नहीं माना जाता।
आत्मा के बारे में स्वच्छंद, उसे स्वच्छंद कहा जाता है। संसार में तो किसीको दो बजे चाय पीने की आदत हो, उसमें हमें हर्ज नहीं है। रात को बारह बजे नाश्ता करने की आदत हो, उसमें भी हमें हर्ज नहीं है। वह आत्मा का मार्ग नहीं है, वह तो व्यवहार है, संसार है। जिसे जो रास आए, वैसी बात है।
सद्गुरु किसे कहते हैं? ये सब गुरु तो हैं परन्तु सद्गुरु किसे कहते हैं? प्रभुश्री को सद्गुरु कहेंगे। जिनमें स्वच्छंद का एक अंश भी नहीं था, उनका सबकुछ ही कृपालुदेव के अधीन था, कृपालुदेव हाज़िर हों या नहीं हों फिर भी उनके ही अधीन। वे सच्चे पुरुष थे।
स्वच्छंद से अंतराय डलते हैं। जो धर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानता, उसे अंतराय कम डलते हैं। और धर्म में स्वच्छंद किया कि अंतराय अधिक डलते हैं।
ज्ञान, दर्शन और वर्तन प्रश्नकर्ता : समझना चाहिए या वर्तन में लाना चाहिए?
दादाश्री : वर्तन में लाना ही नहीं है, वर्तन में आना चाहिए। समझने का फल क्या? तो कहे, 'वर्तन में आता ही है!' समझ हो फिर भी वर्तन में नहीं आए तब तक उसे दर्शन कहा जाता है, और वर्तन में आए उसे ज्ञान कहा है।
प्रश्नकर्ता : समझ, ज्ञान और वर्तन समझ चुके हैं, लेकिन फिर वर्तन में नहीं आता।