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आप्तवाणी-५
दादाश्री : 'आयुष्य बढ़ा सकता हूँ', ऐसा यदि कहता है तो वह एक प्रकार का अहंकार है। कुदरत में उसके आयुष्य की जो लंबाई है, उसके आधार पर उसको खुद को ऐसा लगता है कि मैं आयुष्य बढ़ाऊँगा तो बढ़ जाएगा। आयुष्य बढ़नेवाला है, इसलिए उसको इस प्रकार का अहंकार खड़ा हो जाता है। वर्ना कोई कुछ भी बढ़ा नहीं सकता। इस जगत् में किसीके हाथ में संडास जाने की शक्ति भी नहीं है।
प्रश्नकर्ता : विधाता (विधि का लेख) को 'सत्पुरुष' बदल सकते
दादाश्री : कुछ भी नहीं बदल सकते। विधाता (विधि का लेख) इन्हें बदलते हैं! कोई कुछ भी नहीं बदल सकता। सिर्फ इगोइज़म है यह सारा! ऐसा तो चलता रहता है। आप तो किसीको गलत मत कहना, क्योंकि वह आप पर चिढेगा तो उल्टा खेल करेगा और बैर बाँधेगा। इसलिए उन्हें तो कह देना कि 'साहब, आप ठीक हैं, आपकी बात हमें पसंद आई!' ऐसा करके हमें आगे चले जाना है। इसका तो अंत ही नहीं आएगा। आप उन्हें 'अच्छे हो, गलत हो', कहोगे, तो वे आपको छोड़ेंगे नहीं। आपके साथ ही साथ घूमते रहेंगे।
प्रश्नकर्ता : ईश्वर की प्राप्ति सत्पुरुष की कृपा के बिना हो सके, ऐसा नहीं है। वे सत्पुरुष हैं, तो फिर वे विधाता (विधि का लेख) को टाल क्यों नहीं सकते?
दादाश्री : यदि वे विधाता (विधि का लेख) को टाल सकें ऐसा हो, तब तो उनका सत्-पुरुषपन भी चला जाएगा। सिद्धियाँ खर्च हो जाएँगी। सत्पुरुष की बहुत सारी, अपार सिद्धियाँ होती हैं।
प्रश्नकर्ता : तो फिर उन्हें उनकी स्थिति भोगनी पड़ती है क्या?
दादाश्री : भोगे बिना चारा ही नहीं। भगवान महावीर के शिष्य गोशाला ने उनके दो शिष्यों पर तेजोलेश्या फेंककर जला दिया था। तब उनके दूसरे शिष्यों ने कहा कि, 'साहब! इनका ज़रा ध्यान तो रखिए।' तब भगवान महावीर ने कहा, 'मैं मोक्ष का दाता हूँ। जीवन का दाता नहीं