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आप्तवाणी-५
दादाश्री : यह 'ज्ञान' परिणामित हो और कर्म सब कम हो जाएँ तब सहज होता जाता है। अभी एक-एक अंश करके सहज हो रहा है, फिर संपूर्ण सहज हो जाएगा। देहाध्यास टूटे, तब सहज की ओर जाता है। जितने अंश तक सहज होता है, उतने अंश तक समाधि रहती है। अब आपको विश्वास हो गया है न कि मार्ग मिल गया है?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : जिसे वह विश्वास हो जाए, उसके लिए अंत आ जाता है। वर्ना हर एक वस्तु का अंत आता है, विचारों का अंत आता है, ज्ञान का अंत आता है। सभी का अंत आता है, परन्तु सिर्फ अज्ञान का अंत नहीं आता!
दृष्टा में दृष्टि पड़ी ऐसा जो कहते हैं न, वह तो दृष्टा से बहुत दूर हैं। उन्हें दृष्टा प्राप्त करने में तो बहुत समय लगेगा। यह तो हमें दृष्टा प्राप्त हो चुका है। जिसे जगत् ढूंढ रहा है, वह अपने पास है। अब उसका उपयोग, शुद्ध उपयोग किस तरह करें, वह अपना काम है। वह पुरुषार्थ कहलाता है।
आप घर में से बाहर निकलो तब शुद्ध उपयोग रखते हो अर्थात् रियल और रिलेटिव सब देखते-देखते आगे जाते हो, उस समय शुद्ध उपयोग रहता है। यहाँ किसीके साथ बातचीत करने लगो, उस घड़ी बातचीत करते रहो और शुद्ध उपयोग अंदर रखते रहो। बातचीत करे, वह चंदलाल करते हैं और 'आप' यह सब देखते रहो। उस प्रकार से उपयोग रह सकता है, कोई बहुत मुश्किल वस्तु नहीं है।
मन में तन्मयाकार परिणाम नहीं होते, वाणी में तन्मयाकार परिणाम नहीं होते, वर्तन में तन्मयाकार परिणाम नहीं होते, वही शुद्ध उपयोग है। जागृति आते-आते देर लगती है। धीरे-धीरे जैसे-जैसे कषाय उपशम होंगे, निकाली कषाय-डिस्चार्ज कषाय कम होते जाएँगे, वैसे-वैसे जागृति बढ़ेगी। अब नये कषाय चार्ज नहीं होंगे, परन्तु जो 'डिस्चार्ज' कषाय हैं, उनका 'डिस्चार्ज' होता ही रहेगा।