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आप्तवाणी-५
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भगवान ने ज्ञान-दर्शन - चारित्र इस प्रकार तीन नहीं बताए, चार बताए हैं। चौथा तप बताया है । मोक्ष के चार आधारस्तंभ हैं । क्रमिक मार्ग में भी चार आधारस्तंभ हैं और यहाँ ' अक्रम' में भी चार आधारस्तंभ हैं । तप कौनसा? जब वेदना हो रही हो । आपका सिर दुःखना, वह वेदना है। वास्तव में वह वेदना मानी ही नहीं जाती । उसे तो जानता ही रहता है । परन्तु दूसरी वेदना ऐसी कि ऐसे हाथ काट रहे हों, रगड़-रगड़कर काट रहे हों, ऐसे संयोगों में आ फँसे हों, तब उसे वेदना कहा जाता है । उस घड़ी तप करना है। भगवान ने कहा है कि कौन - सा तप? तू 'होम डिपार्टमेन्ट' में है। स्वपरिणति में है तब परपरिणति उत्पन्न नहीं हो, ऐसा तप करना है। ये परपरिणाम हैं और ये मेरे परिणाम नहीं है, इस तरह स्वपरिणाम में मज़बूत रहना, वही तप है।
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उनके
ऐसा तप गजसुकुमार ने किया था। वे शुद्धात्मा के ध्यान में थे, तब ससुर ने उनके सिर पर मिट्टी की सिगड़ी बनाकर आराम से अंगारे भरे थे। उन्होंने देखा कि 'अरे वाह! ये ससुरजी तो मोक्ष की पगड़ी बाँध रहे हैं।' वे शुद्धात्मा के ध्यान में श्रेणियाँ चढ़ते-चढ़ते केवळज्ञान प्राप्त करके मोक्ष में गए !
मोक्ष का मार्ग है शूरवीरों का...
इस शरीर से हमें कहना चाहिए कि ' हे शरीर ! हे मन ! हे वाणी ! आपको कभी न कभी तो लोग जलाएँगे तो उसके बदले हम ही जला दें तो क्या बुरा है?'
यानी क्षत्रिय बन जाओ। जो स्वरूप अपना नहीं है, वहाँ क्या पीड़ा ? यह स्वरूप अपना नहीं है ऐसा 'ज्ञानी पुरुष' ने आपको बताया है, वह आपको बुद्धि से समझ में आ गया, फिर कैसी पीड़ा ?
आपका सिर्फ एक ही मकान हो, उसे तोड़ना अच्छा नहीं लगता, परन्तु कर्ज़ा बहुत हो गया हो इसलिए उसे बेच देते हो, उसके दस्तावेज भी हो जाते हैं, फिर वह घर टूटे, तब आप शोर मचाओ कि, 'यह घर मेरा है, यह घर मेरा है', तो वह कितना ख़राब लगेगा !